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लॉकडाउन: युवाओं ने सीखा दिया समय के सद्पयोग का पाठ,बदल दी ऐतिहासिक बावड़ी की तस्वीर

locationकोटाPublished: Jun 01, 2020 07:22:13 pm

Submitted by:

Suraksha Rajora

समय के सदुपयोग की परिभाषा कोई समझे तो नया गांव के युवाओं से…

लॉकडाउन: युवाओं ने सीखा दिया समय के सद्पयोग का पाठ,बदल दी ऐतिहासिक बावड़ी की तस्वीर

लॉकडाउन: युवाओं ने सीखा दिया समय के सद्पयोग का पाठ,बदल दी ऐतिहासिक बावड़ी की तस्वीर

कोटा. समय के सदुपयोग की परिभाषा कोई समझे तो गोविंद, पवन महाराज और भंवर समेत नया गांव के युवाओं से। कोरोना वायरस के संक्रमण व लॉकडाउन के दौरान मिले हुए समय को इन युवाओं ने ऐतिहासिक बावड़ी की तस्वीर बदलकर मिसाल पेश कर दी। राजस्थान पत्रिका के अमृतम जलम से प्रेरित होकर इन्होंने नया गांव में स्थित 150 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक धरोहर का रूप बदलकर अब इसका सौंदर्यीकरण करने का जिम्मा भी उठा दिया ।

युवाओं में कोई पर एक कलाकार है तो कोई वाद्य यंत्रों पर सिद्धहस्त है। लेकिन लॉक डाउन के चलते संगीत के आयोजन नहीं होने के कारण इन्होंने समय का सदुपयोग करते हुए बावड़ी के जीर्णोद्धार का जिम्मा उठा लिया । ना केवल जिम्मा उठाया बल्कि अपने संकल्प में भी तन मन से जुट गए।
नया गांव हाडौती कलाकार संरक्षक भंवर रावल गोविन्द सेन के नेतृत्व में भरतराज मालवीय,तुलसीराम ,बिटू,लखन, पवन महाराज ,राज वाल्मीकि ,दीपक महावर सहित 20 युवा पिछले पंद्रह दिन से सामाजिक दूरी रखते हुए श्रमदान कर रहे हैं। सुबह पांच से दस बजे तक युवाओं का श्रम दान का कार्य चलता है।
युवाओं का मानना है कि फालतू बैठने से अच्छा है कुछ सकारात्मक रचनात्मक कार्य किया जाए। इसी धुन पर सवार होकर इन्होंने बावड़ी की फिजा बदल दी। युवाओं ने बताया कि इस बावड़ी का पहले लोग पानी पिया करते थे लेकिन समय की धारा में इस बावड़ी की धारा विलुप्त होती चली गई और अब गत वर्षों से यह बावड़ी पूरी तरह से मलबे और कीचड़ के ढेर में दब गई।
कुमार व अन्य साथी कलाकार बताते हैं कि प्राचीन कुएं बावड़ी और जलाशय हमारी धरोहर है इन्हें बचाना हमारी सबकी जिम्मेदारी है राजस्थान पत्रिका ने हमेशा से ही जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया है इसी की प्रेरणा से हमने बावड़ी का रूप संवारा है उन्होंने बताया कि अब इस बावड़ी का वह है सुंदरीकरण भी करवाएं।
150 साल से भी अधिक प्राचीन है बावड़ी

लोगों के अनुसार नयागांव की यह ऐतिहासिक बावड़ी करीब 150 से अधिक वर्ष प्राचीन है। स्थानीय लोग बताते है किकोत्या भील के समय से पहले को ये बावड़ी है।
बुझती थी प्यास

70 साल पहले तक लोग इस बावड़ी का ही पानी पीते थे लेकिन समय के साथ बावड़ी की दुर्दशा होती रही। कीचड़ मलबे में तब्दील बावड़ी की दशा सुधारने का यहां के युवाओं ने संकल्प लिया। लॉ क डाउन के चलते कामधाम बंद होने से इन युवाओं को नया करने का जुनून सवार हो गया। ओर बारिश होने से पहले बावड़ी को संवारने का बीड़ा उठाया। रावल ने बताया कि ज्यादातर युवा कलाकार है। ओर गाना व ढोलक बजाकर पेट पालते है।
अब बावड़ी का होगा सौंदर्यकरण

गोविन्द ने बताया कि जब वे टीम के साथ बावड़ी की सफाई में लगे थे तो उन्हें बावड़ी के बीच में विशेष आकार का एक पाषाण नजर आया। उन्होंने इसे निकाला तो यह शिवलिंग जैसा लग रहा था। युवाओं ने इसे पानी से धोकर दुधाभिशेक किया। युवाओं ने कहा कि इसमें एक खरोच तक नहीं है। स्थानीय लोगों ने जहां से ये निकली वहीं स्थापित कर दिया। बावड़ी का नव निर्माण का मन बनाया। गांव के महावीर भाटिया ने तुरन्त सीमेंट की व्यवस्था ओर भोजराज ने रेतव पत्थर की व्यवस्था कर दी। उधर गोविन्द ओर भवर लाल ने अपने साथियों व स्थानीय लोगों की सहायता से राशि एकत्रित की। अब इसका सौंदर्यकरण करेंगे।
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