कोटा. रंग की उमंग, चंग की थाप, गेर नृत्य की छठा तो हर जगह देखने को मिलती है, लेकिन इस पर्व पर कोटा के इस गांव विशेष में कुछ खास परम्पराएं भी खूब प्रचलित हैं। जमाना काफी बदल गया है, लेकिन होली की इन परंपराओं का बखूबी निर्वहन आज भी हो रहा है। होली पर्व की ऐसी ही मान्यताओंं और परंपराओं के बारे में राजस्थान पत्रिका आपको रूबरू कराएगा। यूं तो आपने देश में कई अनूठी परंपराओं के बारे में सुना होगा। लेकिन कोटा जिले के मोईकलां गांव में होली के दौरान जो परंपरा अपनाई जाती है उसे सुन आप आश्चर्य में पड़ जाएंगे।
दरअसल, प्रत्येक वर्ष धुलंडी के दिन 150 साल पुरानी परम्परा का निर्वहन करते हुए दूल्हे का जुलूस निकाला जाता है। अब आप सोच रहे होंगे, इसमें खास क्या है, जरा आगे पढि़ए जनाब… BIG NEWS: कुदरत पर विज्ञान की नकेल: अब गायें सिर्फ बछडिय़ां ही पैदा करेंगी
खास बात यह है कि दूल्हे की सवारी घोड़े की जगह गधे पर बिठाकर निकाली जाती है। बाराती के रूप में पूरा गांव शामिल होता है। दूल्हा होली की गुलाल उड़ाता हुआ चलता है और बाराती बने ग्रामीण नाचते गाते सवारी पूरे गांव में घुमाते हैं। बरसों से यह परम्परा चली आ रही है।
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ग्रामीणों ने बताया कि सदियों पहले किसी राजा के पुर्नजन्म के उपलक्ष्य में न्हाण निकालने की परम्परा शुरू हुई थी, तब से यह चली आ रही है। यह जुलूस न्हाण अखाड़ा बाजार पाड़ा व न्हाण अखाड़ा माली पाड़ा की ओर से अलग-अलग निकाला जाता है। इसमें दूल्हा बने युवक को गधे पर बिठाया जाता है और सहरे की जगह झाडू बंधे होते हैं। दो घंटे के जुलूस में गांव का महौल देखने लायक होता है। ग्रामीणों के अनुसार इस दिन गधे पर बैठना गर्व की बात मानी जाती है।
ग्रामीणों ने बताया कि सदियों पहले किसी राजा के पुर्नजन्म के उपलक्ष्य में न्हाण निकालने की परम्परा शुरू हुई थी, तब से यह चली आ रही है। यह जुलूस न्हाण अखाड़ा बाजार पाड़ा व न्हाण अखाड़ा माली पाड़ा की ओर से अलग-अलग निकाला जाता है। इसमें दूल्हा बने युवक को गधे पर बिठाया जाता है और सहरे की जगह झाडू बंधे होते हैं। दो घंटे के जुलूस में गांव का महौल देखने लायक होता है। ग्रामीणों के अनुसार इस दिन गधे पर बैठना गर्व की बात मानी जाती है।
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पूरा गांव करता है दूल्हे की आवभगत
जुलूस के दौरान दुल्हा बनकर गधे पर बैठे युवक की बारात कस्बे के प्रमुख मार्गों से होती हुई न्हाण चौक पहुंचती है। बारात में पूरा गांव शामिल होता है। नाचते-गाते लोग गघे के आगे-आगे चलते हैं। बारात के न्हाण चौक पहुंचते ही लोग दूल्हे का मुंह मीठा करवाते है, दुलार करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार इसी पल से न्हाण लोकोत्सव की शुरुआत मान ली जाती है और सदस्य लोकोत्सव की तैयारों में जुट जाते हैं।
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ढूंड का न्हार्ण पर्व में अहम योगदान गधे पर बैठे दुल्हे को सैकड़ो ग्रामीण जुलूश के रूप में न्हाण चौक पर लाते है और यही से न्हाण लोकोत्सव की शुरूआत मानी जाती है। इसी दिन से न्हाण ढूंड कार्यक्रम को अंजाम देने लग लग जाते है। ढूंड का अर्थ होता है कि कई न्हाण सदस्य ढोल-ताशो के साथ शाम के समय उस घर पहुंचते है जिस घर में वर्षभर के अंदर बेटा या बेटी का जन्म होता है। वहा पर पहुंचने के बाद सभी सदस्य ढोल-नंगाड़े बजाकर काफी खुशी जाहिर करते है। उसके बाद परिवार का सदस्य न्हाण सदस्यों को खुश होकर नकद ईनाम की राशि देता है। ढूंड का न्हाण खर्च में अहम योगदान माना जाता है। कहते है कि ढूंड की शुरूआत भी न्हाण परंपरा की शुरूआत के साथ ही शुरू हुई थी।