क्षेत्र की हजारों बीघा भूमि में खड़े पत्थर की वेस्टेज के टीले सरकार की पर्यावरण को बढ़ावा देने की सोच को ठेंगा दिखा रहे हैं। रामगंजमंडी क्षेत्र में लाइम स्टोन का खनन कार्य जब चालू हुआ तब अधिकांश पत्थर के थरों को तोड़कर फेंक दिया जाता था। मोटे पत्थर की उपयोगिता कम होती थी। प्रशासनिक बंदिश नहीं होने से क्षेत्र की चरागाह व सिवाय चक भूमियां वेस्टेज पत्थरों के टीलों में तब्दील हो गई।
मशीनीकरण का दौर चला तो उत्पादन बढ़ा और पत्थर की कटाई अंतिम तल तक होने लगी। ज्यादा उत्पादन से वेस्टेज पत्थर की निकासी में बढ़ोतरी हुई तथा टीले विशाल आकार लेते चले गए और सरकारी जमीनें मलबे के पहाड़ों में दबकर अस्तित्व विहिन हो गई। आज हजारों बीघा भूमि पर पत्थर के टीले बने हुए हैं।
प्रयास खूब हुए
माइंस सेफ्टी विभाग ने ईको फ्रेन्ड्रली माइंनिग पर जोर देकर कई बार कार्यशालाएं आयोजित की। जिनमें खदानों से निकलने वाली मिट्टी को टीलों वाले स्थान पर डालकर पौधरोपण करने के पाठ पढ़ाए गए। लेकिन खदान मालिकों ने अपने कार्यालयों के आसपास ही पौधे लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।
क्योंकि खदान मालिकों की पर्यावरण के लिए मुसीबत बने पहाड़ों को हरा-भरा करने के प्रति रुचि नहीं। इस कारण अभी तक क्षेत्र में टीलों पर पौधे लगाकर उसे विकसित करने का कार्य मात्र 10 प्रतिशत हुआ है। हालाँकि एएसआई कंपनी ने लक्ष्मीपुरा में शिव उद्यान तथा दुर्जनपुरा में गणेश उद्यान विकसित किया हुआ है।
योजना बनी काम नहीं
राज्य सरकार की तरफ से खनिज तथा वन विभाग के जरिए टीलों को हरा-भरा करने के लिए, रतनजोत के बीज बरसात के दिनों में फैंकने की योजना पर भी कार्य किया गया लेकिन योजना मात्र कागजों में ही सिमटकर रह गई।
सरकार ने कलस्टर बनाकर पर्यावरण शुल्क रायल्टी के साथ लगाकर खदानों को हरा-भरा करने की योजना पर भी कार्य किया। इतना ही नहीं करोड़ों रुपए भी इसमें जमा हुए, लेकिन पर्यावरण को सुधारने के लिए राशि का उपयोग नहीं हुआ।