इन स्टेशनों पर लगी प्रदर्शनीडीआरएम पंकज शर्मा ने बताया कि इंद्रगढ़ स्टेशन पर बेसन के लड़डू, बारां स्टेशन पर मांगरोल की खादी और हिंडौन सिटी स्टेशन पर मूंग दाल की बर्फी यात्रियों को उपलब्ध कराई जा रही है। इस तरह कोटा मंडल के 12 स्टेशनों पर वहां के स्थानीय उत्पाद यात्रियों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
--दक्षिण राज्यों में मांग ज्यादा पिछले पांच-छह दशक में हाड़ौती अंचल में कई उद्योग पनपे। इस बीच देश-दुनिया तक कोटा की पहचान बना कोटा डोरिया का हैण्डलूम उद्योग अभी भी अपनी चमक बिखेर रहा है। पिछले कुछ सालों से कोटा डोरिया ब्रांड की साड़ी, दुप्पटे व अन्य परिधान की खपत दक्षिण राज्यों में लगातार बढ़ रही है।--
कोटा डोरिया की खासियत कोटा डोरिया की साड़ी बेंगलूरु के सिल्क, कोयम्बटूर के कॉटन, सूरत की जरी के धागों से बनाई जाती है। कोटा के कैथून में हाथकरघों पर हाथों की बुनाई से तैयार कोटा डोरिया के परिधान पर कोटा डोरिया के नाम से जीआई लोगो उकेरा होता है। साड़ी, दुप्पटे आदि की बुनाई की डिजाइन में ताना (लम्बाई) के धागों पर बाना (चौड़ाई) के धागों से डिजाइन उकेरी जाती है। मशीनों यानी पावरलूम से तैयार होने वाली साड़ी में बाना की डिजाइन नहीं होती। बाना की डिजाइन के कारण डोरिया का ताना-बाना देशभर तक जुड़ा हुआ है।-
आत्मनिर्भर भारत की झलक कोटा के कैथून में वर्तमान में 4000 हैण्डलूम पर करीब 10 हजार बुनकर काम कर रहे हैं। हर घर में आत्मनिर्भरता दिखाई दे रही है। समय के साथ हथकरघे थोड़े आधुनिक जरूर हुए, लेकिन बुनाई का पूरा काम हाथों से ही हो रहा है।