कोटा

राजस्थान में दो साल के भीतर नदी में डुबने की तीसरी बड़ी दुखांतिका, 46 जनों की हुई मौत, फिर भी सबक क्यों नहीं ले रहे जिम्मेदार ?

-दो साल पहले इसी फरवरी माह में मेज नदी में बस डुबने से 24 जनोंं की चली गई थी जान-दो साल पहले सितम्बर माह में खातौली के पास चम्बल नदी में नाव पलटने से 13 जनों की जान चली गई-हादसे-दर-हादसे, लेकिन न प्रशासन सबक ले रहा और न सरकार गंभीरता दिखा रही

कोटाFeb 21, 2022 / 12:23 am

Kanaram Mundiyar

राजस्थान में दो साल के भीतर नदी में डुबने की तीसरी बड़ी दुखांतिका, 46 जनों की हुई मौत, फिर भी सबक क्यों नहीं ले रहे जिम्मेदार ?

-सुनो सरकार, इन हादसों के लिए कौन है जिम्मेदार!
-नकारा सिस्टम ने कोटा में फिर छीन ली 9 जिन्दगियां

कोटा .
दो साल के भीतर तीसरी नदी दुखांतिका ने कोटा से लेकर जयपुर और जयपुर से उज्जैन तक कईयों को रूला दिया। रविवार सुबह कोटा में चम्बल पुलिया पर हुए हादसे (Big Accident in Kota ) नेे तो विवाह की खुशियों को मातम में बदल दिया। जहां शहनाई गूंजनी थी, वहां शोक पसर गया। दुखांतिका हुई तो फिर वैसे ही सवाल खड़े हो गए हैं कि आखिर हादसा कैसे हुआ। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सवाल का जवाब व समाधान सरकार व सिस्टम को भी पता है, लेकिन ऐसे हादसों की पुनरावृति रोकने के लिए न तो सरकार गंभीर है और न प्रशासन सबक ले रहा है।
ऐसे ही सवाल दो साल पहले फरवरी 2020 में मेज नदी में बस डुबने 24 लोगों एवं सितम्बर माह में खातोली क्षेत्र के गोठड़ा कला में चम्बल में नाव पलटने से 13 लोगों की जान चली के बाद भी खड़े हुए थेे। सवाल यह है कि पूर्व की दो बड़ी दुखांतिकाओं के बाद भी प्रशासन ने कितना सबक लिया। तब मंत्रियों व अफसरों ने मृतक-आश्रितों को मुआवजा दिलाने के साथ दिलासा दिया था कि जांच में दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उस समय सरकार ने प्रदेश भर के पुलियों की मरम्मत कराने आदि के आदेश दिए थे। लेकिन सरकार और अफसरों ने कितने प्रयास किए, कितने पुलों की मरम्मत करवाई। यह रविवार को हुए हादसे ने साबित कर दिया। ज्ञात है कि अब तक उक्त तीन बड़ी दुखांतिकाओं में 46 जनों की मौत हो गई।
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नदी में डुबने के दो साल में बड़े हादसे-
बस नदी में गिरने से 24 लोगों की हुई थी मौत-
26 फरवरी 2020 को मेज नदी में बस गिरने से 24 जनों की मौत हुई थी। सफेद चादर में 24 शव देखकर हर किसी की आंखें नम हो गईं थी। वो त्रासदी देखकर लोग अपने आंसू रोक नहीं पाए थे।

नाव डूबने से 13 जनों की हुई मौत-
17 सितम्बर 2020 को कोटा जिले की सीमा के अंतिम छोर पर स्थित खातौली क्षेत्र के गोठड़ा कलां गांव के पास हुए चम्बल नदी में नाव डूबने से 13 जनों की मौत हो गई थी। गोठड़ा कलां के पास लोग चम्बल नदी पार कर बूंदी जिले के कमलेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए एक नाव में सवार हुए थे। इस नाव में 18 मोटरसाइकिलें और करीब 40 लोग सवार थे। ज्यादा वजन होने से नाव नदी में डूब गई। इस हादसे में 13 लोग डूब गए थे।
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राजस्थान में दो साल के भीतर नदी में डुबने की तीसरी बड़ी दुखांतिका, 46 जनों की हुई मौत, फिर भी सबक क्यों नहीं ले रहे जिम्मेदार ?
राजस्थान में दो साल के भीतर नदी में डुबने की तीसरी बड़ी दुखांतिका, 46 जनों की हुई मौत, फिर भी सबक क्यों नहीं ले रहे जिम्मेदार ?
हादसों से नहीं लिया सबक, पुलों पर सुरक्षा का ध्यान नहीं-
प्रशासन की लापरवाही से गई 9 जनों की जान-
हाड़ौती में कई नदियां हैं और इन पर बने पुलों से रोज हजारों वाहन गुजरते हैं। हादसे नहीं हों, इसके सुरक्षा इंतजाम किसी पुल पर बेहतर नहीं है। तीन साल पहले मेज नदी में बस गिरने के बाद भी प्रशासन ने सबक नहीं लिया। पत्रिका टीम ने कोटा की रियासतकालीन पुलिया और अन्य पुलों का जायजा लिया। इस दौरान पाया कि हादसों के खतरे को लेकर न तो वाहन चालक सतर्क हैं, ही शासन-प्रशासन। वाहनों की रफ्तार को नियंत्रित और व्यवस्थित करने की कोई निगरानी व्यवस्था नहीं दिखी। कोटा शहर में चंबल नदी पर केवल स्टे ब्रिज के अलावा चार पुल हैं। पुलों पर आवारा मवेशी भी पसरे रहते हैं। चम्बल की रियासतकालीन पुलिया से कार नदी में गिरने से 9 लोगों की मौके पर ही हो गई, लेकिन आगे हादसा नहीं हो उसके लिए कोई सबक नहीं लिया। दोपहर बाद यहां यातायात को नियंत्रित करने के लिए कोई तैनात नजर नहीं आया। हादसे के बाद भी यातायात को सुगम करने के प्रयास नहीं हुए। जिस जगह हादसा हुआ, वहां पुलिया पर कोई रैलिंग नहीं है। यहां कई जगह निर्माण कार्य चल रहे हैं, ऐसे में भारी वाहनों की आवाजाही के बीच ही दुपहिया वाहन और चार पहिया वाहन गुजरते हैं। यहां यातायात प्रबंधन की कोई व्यवस्था नजर नहीं आई। पत्रिका टीम ने घटना के बाद मौका देखा तो पाया कि छोटी पुलिया पर जरा सी चूक पर हादसा हो सकता है। रिसायतकालीन पुलिया के अलावा यहां आने-जाने के लिए नदी पर दो हाई लेवल पुल बने हैं। इनमें से एक पुल के नीचे अंडरपास का निर्माण किया जा रहा है, ऐसे में एक ही पुल का उपयोग आने-जाने के लिए हो रहा है। जयपुर की ओर से आने वाले वाहनों को पुराने हाई लेवल पुल या रियासतकालीन पुलिया से ही आना पड़ता है। जहां से रियासतकालीन पुलिया का रास्ता शुरू होता है वहां बहुत संकरी जगह है। बेरिकेड्ंिग के कारण प्रवेश की जगह पर मार्ग संकरा है। इसके आगे नयापुरा चौराहे पर भी वाहनों की गहमा-गहमी रहती है। ऐसे में कोटा से बूंदी की ओर जाने वाले वाहन चालक भ्रमित भी होते हैं।

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