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अब पुन: जागरण की बेला…

locationकोटाPublished: Aug 14, 2018 06:50:38 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

महिलाएं अब भी उतनी आजाद नहीं हैं, जितना उनका हक है। यकीन मानिए, वे अभी रूढिय़ों के बंधन, अशिक्षा की बेडिय़ों में बंधी हुई है।

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अब पुन: जागरण की बेला…

कोटा. अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए हमें 71 वर्ष पूरे कर चुके हैं। यह बात देश की आजादी की है और महिलाओं की आजादी…। वह अभी बाकी है। महिलाएं अब भी उतनी आजाद नहीं हैं, जितना उनका हक है। यकीन मानिए, वे अभी रूढिय़ों के बंधन, अशिक्षा की बेडिय़ों में बंधी हुई है। साथ ही ना जाने कैसे-कैसे आडम्बर, दबाव और ना जाने किस किस तरह से उनकी आजादी को बंदी बनाया जा रहा है। यह हम हर दिन ही देखते हैं। अधिकांश महिलाएं खुद के बारे में भी स्वयं फैसला नहीं कर पाती। आजादी ना मिलने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
मैंने जब वर्तमान परिवेश में स्वाधीनता, लैंगिक समानता व संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार जीने का अधिकार आदि की पृष्ठभूमि में जब नारी सशक्तिकरण की सफलता के आंकड़ों को देखा तो लगा कि अभी मंजिल दूर है। यद्यपि शिक्षा का स्तर सुधरा है।15 अगस्त 1947 के समय देश में 25 विश्वविद्यालय थे। आज 760 विश्वविद्यालय व 4000 महाविद्यालयों की बदौलत नारी की शैक्षिक प्रगति, आत्मबल, कानूनी अधिकार, दहेज प्रताडऩा विरोधी अधिकार, आत्मसम्मान, सभी में अभूतपूर्व प्रगति तो हुई है किंतु अभी भी देश में कई क्षेत्रों में महिलाओं को निराशा ही हाथ लगी है।
समाज में कन्या भू्रण हत्याएं, चारित्रिक कष्ट, पारिवारिक कुण्ठाएं, लैंगिग असमानताएं, दहेज उत्पीडऩ आदि मामलात में नारी को ही सभी सामाजिक आर्थिक समस्याओं की जड़ बतलाने की प्रवृति बनती जा रही है। इसलिए 58 प्रतिशत नारी अशिक्षित हैं, देश में प्रति एक मिनट 3 नारियों का उत्पीडऩ, कन्या भू्रण हत्या हो रही है। परम्पराओं के अनुसार नारी की वेशभूषा व आचार-विचार पर टिप्पणी आदि समस्याएं आज भी हैं।
मुझे याद है कि स्वतंत्र भारत का प्रथम प्रतीक तिरंगा झण्डा सबसे पहले हंसा मेहता ने उठाया था एवं प्रथम बार राष्ट्रीय गान का गायन तीन महिलाओं हंसा मेहता, अमृत कौर एवं अरूणा आसिफ अली ने किया था। उन ओजस्वी प्रतिभाओं के देश में नारी सशक्तिकरण के लिए आरक्षण या कानून की भूलभूलैया में हम क्यों उलझ कर रह गए हैं। उन राष्ट्र निर्माताओं राजेन्द्र प्रसाद, सुभाष चन्द्र बोस, पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी, चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य आदि के अनुयाइयों में आज वह प्रचण्ड उत्साह क्यों क्षीण हो गया। पुन: जागरण की बेला में सभी को उसी उमंग सामाजिक समरसता और पारस्परिक सहयोग की दिशा में आगे बढऩा पड़ेगा। तभी हम अपनी आधी आबादी को आजादी का आनंद दे पाएंगे।
डॉ. एकता धारीवाल
अध्यक्ष अक्षम: कल्याण संस्थान

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