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Indian Women’s Savings Day : नोटबंदी ने बदल डाली सदियों पुरानी घरेलू बचत की दुनिया

locationकोटाPublished: Apr 14, 2019 08:43:57 am

Submitted by:

Rajesh Tripathi

महिलाएं अब आटे-चावल के डिब्बों और संदूकों में ज्यादा दिन तक सहेजकर नहीं रखतीं नए नोट, शहरी इलाकों में खाते खुलवाने का बढ़ा चलन, ग्रामीण इलाकों में अब भी पुराने तरीके ही

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Indian Women’s Savings Day : नोटबंदी ने बदल डाली सदियों पुरानी घरेलू बचत की दुनिया

कोटा. दुनिया का सबसे बड़ा सीक्रेट अब खत्म हो चुका है। सदियों पुरानी राहत भी अब नहीं रही। यह तो अर्थशास्त्री ही जानें कि यह भारत की सबसे बड़ी आर्थिक मजबूती थी या नहीं, लेकिन कोई भी गृहस्थ इंसान इसे सबसे बड़ा आर्थिक सहारा मानने से इनकार नहीं कर सकता। जी हां, हम बात कर रहे हैं उस अनूठी बचत योजना की जिसके लिए भारतीय महिलाएं दुनियाभर में पहचानी जाती थी, लेकिन नोटबंदी ने भारतीय महिलाओं के बचत के तौर तरीके ही बदल कर रख दिए।
इंडियन वीमेंस सेविंग डे की पूर्व संध्या पर जब कोटा के शहरी और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं से उनके बचत के तरीकों के बारे में जानकारी हासिल की गई तो सामने आया कि नोटबंदी के बाद अब वह बड़ी बचत से परहेज करने लगी हैं। अधिकांश महिलाएं अब घर में ज्यादा नकदी नहीं रखतीं। बड़े नोट बचाने का सिलसिला तो पूरी तरह से खत्म हो गया है। जहां शहरी और पढ़ी-लिखी महिलाएं बचत को बैंकों तक ले जाने लगी हैं। वहीं ग्रामीण और बैंकों तक आसान पहुंच नहीं रखने वाली महिलाओं ने 50 और 100 रुपए के नोटों को अपनी बचत का हिस्सा बना लिया है। यदि कुछ नहीं बदला है तो बस बचत करने का पारंपरिक तरीका।

बैंक तक पहुंची बचत

कोटा के शहरी या कस्बाई इलाकों में जहां बैंक की सुविधा आसानी से उपलब्ध है, वहां महिलाएं अब अपना पैसा बैंकों में जमा करा रहीं हैं। जबकि नोटबंदी के पहले शहरों में रहने वाली महिलाएं भी अपने पास हजारों रुपए का कैश रखती थी। तलवंडी में रहने वाली हाउसवाइफ प्रेरणा जोशी ने बताया कि छोटी-छोटी बचत करने का तरीका तो नोटबंदी भी नहीं बदल पाई। बस कुछ बदला है तो उसे रखने का जरिया। नोटबंदी से पहले सारी सेविंग किचिन, अलमारी या बक्सों में रखी रहती थी, लेकिन अब पूरे महीने पाई-पाई बचाने के बाद जो भी पैसा इक_ा होता है, उसे महीने में एक बार या फिर जब मौका लगता है तभी बैंक अकाउंट में डलवा देती हैं।

तलवंडी की रुचिका जैन कहती हैं कि नोटबंदी के दौरान पुराने और बड़े नोट बदलने में खासी दिक्कतें आई थीं। जिसे देखते हुए अब वह कैश घर में छुपाने की जगह अकाउंट में डलवाना ही बेहतर समझती हैं। ईवॉलेट या डेबिट कार्ड का छोटी-छोटी दुकानों पर भी इस्तेमाल होने लगा तो घर में होने वाली छोटी-छोटी सेविंग्स को खाते में जमा करना ही ज्यादा सुरक्षित लगता है। कैश की जरूरत पड़ती है तो एटीएम उसे आसान बना देता है।
नहीं टूटा बक्सों का भरोसा
थेगड़ा की रानू शर्मा कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों में अब भी बैंक महिलाओं से खासे दूर हैं। उन्हें अब भी बक्से, अलमारियां और रसोई ही सबसे सुरक्षित बचत घर लगते हैं। हालांकि नोटबंदी के बाद बड़ा बदलाव यह आया है कि 500 और हजार के जिन बड़े नोट पर कब्जा करने का अपना पहला हक समझतीं थी, अब वह उसकी ओर देखती तक नहीं। घरेलू बचत के लिए उनका सबसे ज्यादा जोर अब 50 रुपए और 100 रुपए के छोटे नोटों पर होता है। बड़े नोट आ भी जाएं तो वह उन्हें तुरंत इस्तेमाल करना ही बेहतर समझती हैं।
अब सेविंग नहीं रही सीक्रेट

वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. गोपाल सिंह नरूका कहते हैं कि नोटबंदी के बाद महिलाओं का पैसे जमा करने का तौर तरीका काफी बदला है। पहले शहर हो या गांव महिलाएं बैंकों से खासा परहेज करती थीं, लेकिन नोटबंदी के बाद कुछ हद तक यह पैसा बैंकों तक पहुंचा। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। हालांकि भारतीय महिलाओं की सेविंग्स घर का सबसे बड़ा सीक्रेट होती थी, लेकिन इसके संस्थागत होने से यह सीक्रेट अब लगभग खत्म हो गया। नतीजतन, परिवार के आड़े वक्त में सबसे ज्यादा काम आने वाले बूंद-बूंद जमा कर भरे गए बचत के इस घड़े में छोटा सा छेद जरूर हो गया। महिलाएं बचत करना तो नहीं छोड़ सकतीं, लेकिन अब उसे पहले की तरह छिपा नहीं पा रहीं। जिसके चलते यह बचत मौके बे मौके खत्म होने लगी और अब बड़ा आकार नहीं ले पा रही।

बचत के साथ दरकी भावनाएं

अर्थशास्त्री डॉ. कपिल देव शर्मा कहते हैं कि तमाम जरूरतों और नजरों से बचाकर इक_ा हुए कैश से महिलाओं का भावनात्मक जुड़ाव होता था। भारतीय महिलाएं हर मौके की याद के तौर पर मिले नोटों को संभालकर रखती थीं। आड़े वक्त में यही पैसा परिजनों के अक्सरकाम आता था, इसलिए इसकी ओर किसी की नजर भी टेढ़ी नहीं होती थी, लेकिन नोटबंदी के बाद घरेलू बचत के साथ-साथ भावनाएं तक दरक गईं। ब्लैक मनी के नाम पर महिलाओं के बक्सों और रसोइयों में रखी अधिकांश रकम बैंकों तक तो पहुंच गई, लेकिन परिजनों की नजर में आने के कारण अब जब भी बड़ा खर्च सामने आता है तो सबसे पहले वह इसी को निकलवाने की ताक में रहते हैं। इससे निश्चित ही महिलाओं के आर्थिक हाथ कमजोर हुए हैं।
बचत बनी चुनौती
मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओं के लिए बचत करना अब किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। पहले छोटी-मोटी जरूरतों के लिए पति तुरंत कैश दे देते थे। इसकी एक-एक पाई बचाकर हजारों रुपए इक_ा हो जाते, लेकिन नोटबंदी के बाद ज्यादातर ट्रांजेक्शन डिजिटल होने लगे। जब नकदी हाथ में आएगी ही नहीं तो बचेगी कैसे। जो थोड़ा बहुत पैसा आता है उसे भी फिर से नोट न बदल जाएं इस डर से एकांउट में डलवा देते हैं।
कृष्णा गुप्ता, गुलाबबाड़ी

छोटे नोट की छोटी बचत
मेरे पति काम में इतना व्यस्त रहते हैं कि कई बार वे छोटी—छोटी चीजें भूल जाते हैं। ऐसा कई बार होता है, जब वे किसी खर्च के लिए बड़ा नोट देते हैं, लेकिन हिसाब लेना भूल जाते हैं। ऐेसे में उस अतिरिक्त राशि को एक गुल्लक में डाल देती हूं। जब राशि इक_ी हो जाती है तो उसे बैंक में डलवा आते हैं। नोटबंदी के बाद भी बचत का तरीका तो यही है, बस बड़े नोट की जगह छोटे नोटों ने ले ली है।
विमला बाई, तलवंडी

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