बैंक तक पहुंची बचत कोटा के शहरी या कस्बाई इलाकों में जहां बैंक की सुविधा आसानी से उपलब्ध है, वहां महिलाएं अब अपना पैसा बैंकों में जमा करा रहीं हैं। जबकि नोटबंदी के पहले शहरों में रहने वाली महिलाएं भी अपने पास हजारों रुपए का कैश रखती थी। तलवंडी में रहने वाली हाउसवाइफ प्रेरणा जोशी ने बताया कि छोटी-छोटी बचत करने का तरीका तो नोटबंदी भी नहीं बदल पाई। बस कुछ बदला है तो उसे रखने का जरिया। नोटबंदी से पहले सारी सेविंग किचिन, अलमारी या बक्सों में रखी रहती थी, लेकिन अब पूरे महीने पाई-पाई बचाने के बाद जो भी पैसा इक_ा होता है, उसे महीने में एक बार या फिर जब मौका लगता है तभी बैंक अकाउंट में डलवा देती हैं।
तलवंडी की रुचिका जैन कहती हैं कि नोटबंदी के दौरान पुराने और बड़े नोट बदलने में खासी दिक्कतें आई थीं। जिसे देखते हुए अब वह कैश घर में छुपाने की जगह अकाउंट में डलवाना ही बेहतर समझती हैं। ईवॉलेट या डेबिट कार्ड का छोटी-छोटी दुकानों पर भी इस्तेमाल होने लगा तो घर में होने वाली छोटी-छोटी सेविंग्स को खाते में जमा करना ही ज्यादा सुरक्षित लगता है। कैश की जरूरत पड़ती है तो एटीएम उसे आसान बना देता है।
थेगड़ा की रानू शर्मा कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों में अब भी बैंक महिलाओं से खासे दूर हैं। उन्हें अब भी बक्से, अलमारियां और रसोई ही सबसे सुरक्षित बचत घर लगते हैं। हालांकि नोटबंदी के बाद बड़ा बदलाव यह आया है कि 500 और हजार के जिन बड़े नोट पर कब्जा करने का अपना पहला हक समझतीं थी, अब वह उसकी ओर देखती तक नहीं। घरेलू बचत के लिए उनका सबसे ज्यादा जोर अब 50 रुपए और 100 रुपए के छोटे नोटों पर होता है। बड़े नोट आ भी जाएं तो वह उन्हें तुरंत इस्तेमाल करना ही बेहतर समझती हैं।
बचत के साथ दरकी भावनाएं अर्थशास्त्री डॉ. कपिल देव शर्मा कहते हैं कि तमाम जरूरतों और नजरों से बचाकर इक_ा हुए कैश से महिलाओं का भावनात्मक जुड़ाव होता था। भारतीय महिलाएं हर मौके की याद के तौर पर मिले नोटों को संभालकर रखती थीं। आड़े वक्त में यही पैसा परिजनों के अक्सरकाम आता था, इसलिए इसकी ओर किसी की नजर भी टेढ़ी नहीं होती थी, लेकिन नोटबंदी के बाद घरेलू बचत के साथ-साथ भावनाएं तक दरक गईं। ब्लैक मनी के नाम पर महिलाओं के बक्सों और रसोइयों में रखी अधिकांश रकम बैंकों तक तो पहुंच गई, लेकिन परिजनों की नजर में आने के कारण अब जब भी बड़ा खर्च सामने आता है तो सबसे पहले वह इसी को निकलवाने की ताक में रहते हैं। इससे निश्चित ही महिलाओं के आर्थिक हाथ कमजोर हुए हैं।
मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाओं के लिए बचत करना अब किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। पहले छोटी-मोटी जरूरतों के लिए पति तुरंत कैश दे देते थे। इसकी एक-एक पाई बचाकर हजारों रुपए इक_ा हो जाते, लेकिन नोटबंदी के बाद ज्यादातर ट्रांजेक्शन डिजिटल होने लगे। जब नकदी हाथ में आएगी ही नहीं तो बचेगी कैसे। जो थोड़ा बहुत पैसा आता है उसे भी फिर से नोट न बदल जाएं इस डर से एकांउट में डलवा देते हैं।
मेरे पति काम में इतना व्यस्त रहते हैं कि कई बार वे छोटी—छोटी चीजें भूल जाते हैं। ऐसा कई बार होता है, जब वे किसी खर्च के लिए बड़ा नोट देते हैं, लेकिन हिसाब लेना भूल जाते हैं। ऐेसे में उस अतिरिक्त राशि को एक गुल्लक में डाल देती हूं। जब राशि इक_ी हो जाती है तो उसे बैंक में डलवा आते हैं। नोटबंदी के बाद भी बचत का तरीका तो यही है, बस बड़े नोट की जगह छोटे नोटों ने ले ली है।