ऋतु के अनुसार सेवा दर्शन व भोग में थोड़ा बदलाव होता है। श्रावण माह में विशेष मनोरथ होती है। होली व जन्माष्टमी पर भी विशेष छटा बिखरती है। जन्माष्टमी पर पन्द्रह दिन पहले से बधाई गायन शुरू हो जाता है। जन्माष्टमी पर जन्म के दर्शन के बाद दूसरे दिन नंदोत्सव में विशेष उल्लास बिखरता है। ठाकुरजी को रजत पालना में झुलाया जाता है। आचार्य परिवार के सदस्य यशोदा व मंदिर के मुखिया नंद बाबा बनते हैं। मंदिर परिवार के अन्य कर्मचारी ग्वाल बाल बनते हैं। जन्माष्टमी से एक दिन पहले छठी पूजन किया जाता है।
महाप्रभुजी वल्लभाचार्य,वि_लनाथजी महाराज,गोस्वामी पुरुषोत्तम महाराज का प्राट्योत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। विनय बाबा बताते हैं कि मंदिर में 350 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्रद्धालु जन्माष्टमी पर कृष्ण के जन्म के दर्शन नहीं कर पाएंगे। कोरोना वायरस को देखते हुए श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। श्रद्धालुओं से अपील है कि घर में कृष्णजन्माष्टमी मनाएं।