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पहले गागरोन विराजे फिर कोटा नरेश के आग्रह पर नंदग्राम में महाप्रभुजी को किया था स्थापित..

locationकोटाPublished: Aug 12, 2020 05:56:26 am

Submitted by:

shailendra tiwari

शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर करीब 350 वर्ष पुराना है।
 

पहले गागरोन विराजे फिर कोटा नरेश के आग्रह पर नंदग्राम में महाप्रभुजी को किया था स्थापित..

पहले गागरोन विराजे फिर कोटा नरेश के आग्रह पर नंदग्राम में महाप्रभुजी को किया था स्थापित..

कोटा. पाटन पोल नंद ग्राम क्षेत्र में महाप्रभु जी का बड़ा मंदिर है। यह शहर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर करीब 350 वर्ष पुराना है। वल्लभ सम्प्रदाय के आचार्य जगन्नाथ राय ने इसे स्थापित किया। महाराज शत्रुसाल प्रथम के समय का यह मंदिर है। यहां महाप्रभुजी के साथ नवनीत प्रियाजी का विग्रह विराजमान है।
मंदिर के गोस्वामी विनय बाबा बताते हैं कि महाप्रभुजी को पहले जतीपुरा मथुरा से लाकर गागरोन में स्थापित किया गया, जहां से कोटा के तत्कालीन नरेश के आग्रह पर नंदग्राम स्थित हवेली में विराजमान किया गया। मथुराधीश जी की तरह ही महाप्रभुजी के बड़े मंदिर में भी वल्लभ सम्प्रदाय के अनुसार ठाकुरजी की बाल स्वरूप में सेवा होती है। मंदिर शहर वासियों के लिए आस्था का प्रमुख केन्द्र हैं। शहर के कौने-कौने से श्रद्धालु दर्शन को आते हैं।
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ऋतु के अनुसार सेवा
ऋतु के अनुसार सेवा दर्शन व भोग में थोड़ा बदलाव होता है। श्रावण माह में विशेष मनोरथ होती है। होली व जन्माष्टमी पर भी विशेष छटा बिखरती है। जन्माष्टमी पर पन्द्रह दिन पहले से बधाई गायन शुरू हो जाता है। जन्माष्टमी पर जन्म के दर्शन के बाद दूसरे दिन नंदोत्सव में विशेष उल्लास बिखरता है। ठाकुरजी को रजत पालना में झुलाया जाता है। आचार्य परिवार के सदस्य यशोदा व मंदिर के मुखिया नंद बाबा बनते हैं। मंदिर परिवार के अन्य कर्मचारी ग्वाल बाल बनते हैं। जन्माष्टमी से एक दिन पहले छठी पूजन किया जाता है।

महाप्रभुजी वल्लभाचार्य,वि_लनाथजी महाराज,गोस्वामी पुरुषोत्तम महाराज का प्राट्योत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है। विनय बाबा बताते हैं कि मंदिर में 350 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्रद्धालु जन्माष्टमी पर कृष्ण के जन्म के दर्शन नहीं कर पाएंगे। कोरोना वायरस को देखते हुए श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। श्रद्धालुओं से अपील है कि घर में कृष्णजन्माष्टमी मनाएं।
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