कोटा शहर के कृष्ण मंदिरों में सबसे ख्यात और विशेष है पाटनपोल मथुराधीश मंदिर। इसके आसपास का पूरा इलाका नंदग्राम कहलाता है। यह वल्लभकुल सम्प्रदाय की प्रथम पीठ है। कृष्ण जन्माष्टमी पर्व परम्परागत ढंग से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंदोत्सव मनाते हैं। ठाकुरजी के स्वर्ण पलने में दर्शन करवाए जाते हैं।
नए कोटा में तलवंडी िस्थत राधाकृष्ण मंदिर की खूब ख्याति है। कोचिंग छात्रों के बीच यह मंदिर खासा लोकप्रिय है। यहां बच्चे अपने सफल कैरियर के लिए मन्नत के धागे बांधते हैं।
कोटा के एक छोर पर रंगबाड़ी िस्थत श्री बांकेबिहारी मंदिर में ठाकुरजी की छवि भक्तों को मोहने वाली है। काले पत्थर से बने विग्रह को देखने मात्र से सारी मोह माया दूर हो जाती है।
गढ़ पैलेस िस्थत बृजनाथजी मंदिर महाराव भीम सिंह प्रथम ने बनवाया था। महाराव पर कृष्ण भक्ति का ऐसा रंग चढ़ा था कि उन्होंने अपना नाम कृष्ण दास कर दिया और शहर का नाम नंदग्राम कर लिया था। वह युद्ध क्षेत्र में भी बृजनाथजी को हाथी के ओहदे में अपने समक्ष रखते थे। उन्होंने अंतिम युद्ध पंथार में लड़ा। इसमें वीरगति को प्राप्त हुए। महाराव के निधन के बाद बृजनाथजी के विग्रह व हाथी को निजामुलमुल्क लूटकर अपने साथ ले हैदराबाद ले गया था और कोषागार में रख दिया। वहां के एक सेठ को इस बात का पता चला तो उसने चिनकुलीन खां से विग्रह लेकर हैदराबाद में मंदिर बनाकर स्थापना करवाई व सेवा करते रहे। बाद में रियासत के आग्रह पर सेठ ने सहजता से बृजनाथजी का विग्रह सौंप दिया। महाराव विग्रह को मंदिर में स्थापित किया गया।