19वें करगिल विजय दिवस से पूर्व पत्रिका डॉट कॉम पर हम आपको बता रहे हैं उन वीरों की कहानियां, जो देश के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गईं। यूं तो करगिल में शहीद होने वाले हर जवान की कहानी आपकी आंखे नम कर देती है लेकिन एक नाम ऐसा है जो कभी न भूलने वाली दास्तां बयान करता है।
एक ऐसी शहादत, जो जंग शुरू होने से पहले ही दी गई। ये कहानी है सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों की। नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम। सौरभ कालिया की उम्र उस वक्त 23 साल थी और अर्जुन राम की महज 18 साल थी।
वह दिन आएगा….
12 दिसंबर 1998 …पासिंग परेड का दिन। सभी जवान खुश नजर आ रहे थे, सभी ने मंच पर आकर अपनी फेयरवेल स्पीच दी फिर सौरभ के बोलने का नंबर आया, तो पहले वह कुछ देर शांत रहे। फिर कहा, आज मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं 4 जाट रेजिमेंट में शामिल हो गया हूं, लेकिन एक दिन आएगा जब यह यूनिट मुझ पर गर्व करेगी’।
सौरभ को भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था। पहली पोस्टिंग 4 जाट रेजिमेंट के साथ करगिल सेक्टर में हुई थी। नौकरी को कुछ ही महीने हुए थे, वह करगिल में अपने साथियों के साथ अपनी पोस्ट पर मुस्तैद थे।
दुश्मन के हथियारों पर भारी पड़ा जज्बा
तेजी से उन तक पहुंचने के लिए सौरभ अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। वह जल्द ही वहां पहुंच गए जहां दुश्मन के होने की खबर थी। सौरभ को लगा कि उन्हें मिला इनपुट गलत हो सकता है, लेकिन दुश्मन की हलचल ने अपने होने पर मुहर लगा दी। वह तेजी से दुश्मन की ओर बढ़े, तभी दुश्मन ने उन पर हमला कर दिया।
दुश्मन तकरीबन 200 की संख्या में था। सौरभ ने स्थिति को समझते हुए तुरंत अपनी पोजीशन ले ली। दुश्मन सैनिकों के पास भारी मात्रा में हथियार थे। इधर सौरभ और उनके साथियों के पास ज्यादा हथियार नहीं थे । इस लिहाज से वह दुश्मन की तुलना में बहुत कमजोर थे, पर उनका ज़ज्बा दुश्मन के सारे हथियारों पर भारी था।
वह कभी पकड़े नहीं जाते, मगर… सौरभ ने अपनी टीम के साथ तय किया कि वह आंखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करेंगे और उन्हें एक इंच भी आगे बढऩे नहीं देंगे। फिर तो सौरभ अपने साथियों के साथ दुश्मन की राह का कांटा बन कर खड़े रहे। उनकी रणनीतियों के सामने दुश्मन की बड़ी संख्या भी पानी मांगने लगी थी। हालांकि, दोनों तरफ की गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह ज़ख्मी जरूर हो गए थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
दुश्मन सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी जानना चाहता था, इसलिए उसने लगभग 22 दिनों तक अपनी हिरासत में रखा। उसकी लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी। इस कारण दुश्मन ने यातनाओं का दौर शुरु कर दिया।
सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया। उनकी आंखें निकाल ली गई, हड्डियां तोड़ दी गईं। यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे।
सैनिक की शहादत का कर्ज न कोई सेना उतार सकती है और न ही कोई देश। लेकिन सौरभ का एक और कर्ज हम पर उधार है है दरअसल सौरभ कालिया सेना में नियुक्ति के बाद अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे। पालमपुर के आईमा स्थित निवास में उनके परिजनों ने सौरभ से जुड़ी हर वस्तु सहेज कर रखी है, जो यहां आने-जाने वालों को सैनिकों की वीरता की याद दिलाती है।