राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता रोहित सिंह ने बताया कि कोर्ट ने कुक्कुट प्रजाति को लाने ले जाने से पहले उनके पिंजरे को अच्छी तरह साफ और विषाणु मुक्त करने, 25 डिग्री से ज्यादा और 15 डिग्री से कम तापमान में ट्रांसपोर्टेशन नहीं करने के भी निर्देश दिए थे।
ठूंस-ठूंस कर भरे होते हैं पिंजरे याचिकाकर्ता ने सीएआरआई के प्रधान वैज्ञानिक और कुक्कुट के रहन-सहन पर शोध करने वाले वैज्ञानिक डॉ. एसके भांजा की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कोर्ट को बताया कि पूरे राजस्थान में मुर्गी या मुर्गे को पालने के लिए बनाए गए बंद पिंजरे में करीब 400 वर्ग सेंटीमीटर जगह ही मिलती है, जबकि पोल्ट्री फार्म से दुकानों तक ले जाते समय तो उन्हें पिंजरों में बुरी तरह ठूंसकर रखा जाता है। पिंजरों की ऊंचाई इतनी कम होती है कि कुक्कुट सिर उठाकर खड़े भी नहीं हो सकते। इस कारण यह बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। उन्हें खाकर इंसान के शर
ीर पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर विषाणुजनित बीमारियों की वजह यही स्थितियां बनाती हैं, जबकि यूरोपियन देश में प्रति मुर्गा या मुर्गी न्यूनतम 750 प्रति वर्ग सेंटीमेंटर जगह होना अनिवार्य है।
ीर पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर विषाणुजनित बीमारियों की वजह यही स्थितियां बनाती हैं, जबकि यूरोपियन देश में प्रति मुर्गा या मुर्गी न्यूनतम 750 प्रति वर्ग सेंटीमेंटर जगह होना अनिवार्य है।