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निगम के अधीक्षण अभियंता प्रेमशंकर शर्मा, अधिशासी अभियंता प्रशांत भारद्वाज, सहायक अभियंता ऋचा गौतम, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी सतीश मीणा सोमवार को सफाई प्रबंधन का अध्ययन करने के लिए सोमवार रात इंदौर पहुंच गए। अलसुबह ही कोटा नगर निगम की टीम इंदौर निगम के कचरा सफाई प्रबंधन एवं निस्तारण के लिए बनाए गए कन्ट्रोल रूम पर पहुंच गई। टीम ने वहां देखा कि अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त कन्ट्रोल रूम बनाया गया है। इसके बाद निगम पहुंचकर समूची व्यवस्था पर अधिकारियों से चर्चा की और लोगों से फीडबैक भी लिया। अधिकारियों ने माना कि इंदौर और कोटा शहर की सफाई व्यवस्था की तुलना की जाए तो जीरो ग्राउण्ड से काम शरू करना होगा। अधिकारियों से बातचीत के आधार पर पत्रिका ने एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है, पेश है यह रिपोर्ट।
निगम के अधीक्षण अभियंता प्रेमशंकर शर्मा, अधिशासी अभियंता प्रशांत भारद्वाज, सहायक अभियंता ऋचा गौतम, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी सतीश मीणा सोमवार को सफाई प्रबंधन का अध्ययन करने के लिए सोमवार रात इंदौर पहुंच गए। अलसुबह ही कोटा नगर निगम की टीम इंदौर निगम के कचरा सफाई प्रबंधन एवं निस्तारण के लिए बनाए गए कन्ट्रोल रूम पर पहुंच गई। टीम ने वहां देखा कि अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त कन्ट्रोल रूम बनाया गया है। इसके बाद निगम पहुंचकर समूची व्यवस्था पर अधिकारियों से चर्चा की और लोगों से फीडबैक भी लिया। अधिकारियों ने माना कि इंदौर और कोटा शहर की सफाई व्यवस्था की तुलना की जाए तो जीरो ग्राउण्ड से काम शरू करना होगा। अधिकारियों से बातचीत के आधार पर पत्रिका ने एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है, पेश है यह रिपोर्ट।
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आमने-सामने
इंदौर
सफाई पर निगरानी के लिए हाइटैक कन्ट्रोल रूम है। प्रत्येक टिपर का रूट चार्ट ऑनलाइन है। टिपर गैराज से रवाना होते ही जीपीएस सिस्टम से वह कन्ट्रोल रूम से जुड़ जाता है। टिपर का प्रत्येक गली का समय निर्धारित किया गया है। साथ ही, स्पीड भी तय की गई, ताकि लोग आसानी से टिपर में कचरा डाल सकें।
आमने-सामने
इंदौर
सफाई पर निगरानी के लिए हाइटैक कन्ट्रोल रूम है। प्रत्येक टिपर का रूट चार्ट ऑनलाइन है। टिपर गैराज से रवाना होते ही जीपीएस सिस्टम से वह कन्ट्रोल रूम से जुड़ जाता है। टिपर का प्रत्येक गली का समय निर्धारित किया गया है। साथ ही, स्पीड भी तय की गई, ताकि लोग आसानी से टिपर में कचरा डाल सकें।
कोटा
शहर में सफाई पर निगरानी के लिए कोई कन्ट्रोल रूम नहीं बनाया गया है। ज्यादातर टिपर जीपीएस सिस्टम से नहीं जुड़े हुए हैं। कृषि कॉलोनियों में तो अभी तक न तो घर-घर कचरा संग्रहण की व्यवस्था लागू हुई है और न टिपर पहुंचते हैं। टिपर तेज स्पीड से लाउड स्पीकर बजाते हुए निकल जाते हैं। समय निर्धारित नहीं है।
इंदौर
शहर में दस सब कचरा कलेक्शन सेन्टर बने हुए हैं। कचरा भरते ही टिपर सब स्टेशन पर खाली कर फिर रूट पर चला जाता है। टिपर में गीला और सूखा कचरा संग्रहण के अलग-अलग खांचे बने हुए हैं। लोग भी घरों में दो तरह के डस्टबिन रखते हैं, टिपर आते ही अलग-अलग कचरा खाली करते हैं।
कोटा
शहर में केवल एक सब कचरा कलेक्शन सेन्टर थेगड़ा में है। शहर के तीनों जोन का कलेक्शन सेन्टर बनाया जाना था, लेकिन खींचतान के कारण नहीं बना। टिपरों में गीला और सूखा कचरा एक साथ एकत्र किया जाता है। घरों में ही गीले और सूखे कचरे के लिए अलग-अलग डस्टबिन नहीं रखे जाते हैं।
इंदौर
12 हजार कर्मचारी हैं। प्रत्येक अनुभाग में पूरा स्टाफ है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर स्वास्थ्य निरीक्षक को वाहन सुविधा उपलब्ध है। ये सभी जीपीएस से जुड़े हैं। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर निरीक्षक तक को सुबह निगरानी के लिए फील्ड मेंं जाना होता है। नहीं जाने पर जीपीएस से पता चल जाता है और कार्रवाई होती है। शत प्रतिशत बायोमैट्रिक से हाजिरी दर्ज होती है।
कोटा
नगर निगम में स्थायी और अस्थायी कुल मिलाकर तीन हजार कर्मचारी अधिकारी हंै। स्वास्थ्य अनुभाग में वाहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी व ज्यादातर स्वास्थ्य निरीक्षकों के पद खाली चल रहे हैं। पिछले दिनों आयुक्त ने शहर की सफाई व्यवस्था का जायजा लिया तो स्वास्थ्य अनुभाग के निरीक्षक नजर नहीं आए। बायौमेट्रिक उपस्थिति की स्थिति अच्छी नहीं है।
इंदौर
सब कचरा स्टेशन पर करब 20 मीट्रिक टन के टैंकर में कचरा भरा जाता है। यह पूरी तरह कवर्ड है। इस टैंकर से कचरा ट्रेंचिंग ग्राउण्ड पर पहुंचता है। वहां गीला और सूखा कचरा अलग-अलग किया जाता है। गीले कचरे से खाद बनाई जाती है। इस खाद की काफी मांग है। सूखे कचरे को रिसाइकिल किया जाता है। प्लास्टिक की बाल्टियां व अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं।
कोटा
शहर से ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में कचरा भरकर नांता स्थित ट्रेंचिंग ग्राउण्ड ले जाया जाता है। यहां ऐसे ही कचरे को खाली कर दिया जाता है। इस कारण यहां कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है। एनजीटी ने भी कचरे का पहाड़ खड़ा करने पर आपत्ति जताई थी। पिछले चार साल से वेस्ट टू एनर्जी का प्रोजेक्ट शुरू करने की कवायद कागजों में ही चल रही है।