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कोटा की कचौरी का स्वाद भी कुछ ऐसा ही है। चटपटी, हींग की खुशबू में डूबी और एक दम खस्ता। आइए जानते हैं कि लोग इसके दीवाने क्यों हैं। पिज्जा-बर्गर की एंट्री के बावजूद कचौरी की डिमांड क्यों बढ़ रही है। पूरा देश भले ही पिज्जा और बर्गर का दीवाना हो, लेकिन कोटा के लोगों की जुबान पर कोटा कचौरी का जायका ही छाया हुआ है।
पूरी दुनिया में बनाई पहचान
कोटा की कचौरी ने देश ही नहीं दुनिया में अपनी खास पहचान बनाई है। अल्फांसो के आम और दार्जलिंग टी की तरह ही कोटा की कचौरी भी ‘ज्योग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन’ के तौर पर दुनिया भर में मशहूर है। उड़द की दाल में हींग के तड़के के साथ तली जाने वाली इस खास कचौरी को बौद्धिक संपदा प्रकोष्ठ ने ‘कोटा कचौरी’ के नाम से बौद्धिक संपदा के अधिकार में खास तौर पर दर्ज किया है।
उड़द की दाल में हींग, गर्म मसाले और खड़ी मिर्च डालकर तैयार होने वाली इस कचौरी के जायके का कोई तोड़ नहीं है। एक कचौरी का वजन करीब 80-85 ग्राम होता है। जिसमें करीब 55-60 ग्राम दाल और मसालों का मिक्सचर भरा जाता है। तेज आंच पर सेकने से एक दम खस्ता हो जाती है। जिसे लोग चटनी के साथ बड़े चाव से खाते हैं।