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कोटा

नोटों के वजन से दब गए निगम घोटाले अब ये आया मामला सामने

kota nagar nigam scam घोटाले पर जांच के नाम पर पर्दा

कोटाOct 09, 2019 / 09:19 pm

Suraksha Rajora

नोटों के वजन से दब गए निगम घोटाले अब ये आया मामला सामने

नोटों के वजन से दब गए निगम घोटाले अब ये आया मामला सामने

कोटा. नगर निगम में हर बार घोटाले और गड़बडिय़ां सामने आती हैं और जांच के नाम पर कमेटियां गठित कर पर्दा डाल दिया जाता है। पिछले पांच साल में कई घोटाले सामने आए, लेकिन एक भी मामले की जांच पूरी नहीं हो पाई। इस कारण घोटाले फाइलों में ही दबकर रह जाते हैं। रावण के पुतले के सिर नहीं जलने के मामले की भी महापौर ने जांच कमेटी बनाने के आदेश दे दिए हैं। इस जांच को लेकर भी महापौर और उपायुक्त आमने-सामने हो गए हैं।

निगम के भाजपा बोर्ड का अगले माह कार्यकाल पूरा हो जाएगा। मौजूदा बोर्ड में निगम में आधा दर्जन चर्चित घोटाले सामने आए, लेकिन एक भी मामले की जांच में नतीजा नहीं निकला। जांच के नाम पर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। पत्रिका ने पिछले पांच साल में पांच बड़े घोटाले और जांच कमेटी का क्या किया, इसकी विश्लेषणात्मक स्टोरी तैयार की है। पेश है यह रिपोट..
1. गोशाला में चारा घोटाला
भाजपा बोर्ड बनने के दूसरे ही साल निगम की ओर से संचालित बंधा धर्मपुरा गोशाला में चारा घोटाला सामने आया था। ठेकेदार ने भूसे की आपूर्ति नहीं की थी और लाखों रुपए का बिल उठा लिया था। भूख के कारण गायों की मौत होने पर मामले ने तूल पकड़ा और महापौर ने अधिकारियों की जांच कमेटी गठित कर दी। तत्कालीन आयुक्त ने दोषी ठेकेदार को बचाने का प्रयास किया। जांच कमेटी ने ठेकेदार को ब्लैकलिस्टेड करने की अनुश्ंासा की थी, लेकिन वह ठेकेदार आज भी निगम में काम कर रहा है।

2. डीजल घोटाल

पिछले साल कार्य समिति की बैठक में गैराज समिति के अध्यक्ष गोपालराम मण्डा ने डीजल घोटाले का खुलासा किया था। निगम के वाहनों में डीजल भरे बिना ही बिल उठाने का मामला सामने आया था। तत्कालीन उपायुक्त की भूमिका इस घोटाले में संदिग्ध थी। महापौर ने बैठक में ही जांच कमेटी गठित कर दी थी।
जांच कमेटी में तत्कालीन उपायुक्त श्वेता फगेडिय़ा को शामिल किया गया था, लेकिन घोटाले पर पर्दा डालने के लिए 24 घंटे में फगेडिय़ा को जांच कमेटी से हटा दिया गया। विवाद बढऩे पर महापौर ने डीएलबी को पत्र लिखकर सरकार के स्तर पर जांच करवाने की सिफारिश की थी। स्वायत्त शासन मंत्री तक भी मामला पहुंचा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ और जांच के नाम पर पर्दा डाल दिया गया।

3. सफाई कर्मचारी भर्ती घोटाला
भाजपा बोर्ड में सफाई कर्मचारी भर्ती का बड़ा घोटाला सामने आया था। इसमें तत्कालीन आयुक्त विक्रम जिंदल के दफ्तर में काम करने वाले तथा कर्मचारियों के बेटे-बेटियों को फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर सफाई कर्मी पद पर भर्ती करवा दिया गया। पत्रिका द्वारा मामला उजागर करने के बाद आधा दर्जन सफाई कर्मचारियों को बर्खास्त भी कर दिया गया था। जांच के लिए महापौर ने डीएलबी को पत्र लिखा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। डीएलबी से जांच के संबंध में कोई जवाब तक नहीं आया है।

4. हाजिरी घोटाला

पिछले दिनों महापौर महेश विजय और पार्षद राममोहन मित्रा ने रायपुरा सेक्टर कार्यालय का औचक निरीक्षण किया था। इसमें सफाई कर्मचारियों के नहीं आने पर भी हाजिरी लगाकर वेतन उठाने तथा हाजिरी लगाने की एवज में हर माह पांच हजार रुपए सफाई कर्मचारियों से वसूली का मामला सामने आया था। महापौर ने उपस्थिति रजिस्ट्रर जब्त कर उपायुक्त को जांच सौंपी थी। जांच रिपोर्ट के बाद तत्कालीन आयुक्त ने मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी, स्वास्थ्य निरीक्षक व जमादार को 17 सीसी का नोटिस दिया था, इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

5. मिट्टी घोटाला
निगम की ओर से रीको के पार्क में लाखों रुपए की मिट्टी डालने का मामला चर्चा में आने के बाद तत्कालीन उपायुक्त श्वेता फगेडिय़ा ने जांच कमेटी बनाई थी। इसमें जांच कमेटी ने माना कि ठेकेदार ने जितनी मिट्टी पार्क में डालने का बिल पेश किया है, उतनी मिट्टी नहीं डाली गई है। पिछले दिनों हुई बोर्ड बैठक में प्रतिपक्ष नेता अनिल सुवालका ने इस घोटाले में दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। हैरानी की बात यह कि जांच रिपोर्ट में किसी को भी दोषी नहीं माना गया है।
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