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अपने विभाग में ही डेयरी मंत्री भाया की नहीं चली

locationकोटाPublished: Jul 08, 2019 10:48:31 pm

कोटा डेयरी के अधिकारियों व ठेका फर्म पर कार्रवाई नहीं

kota

डेयरी मंत्री भाया की नहीं चली

कोटा. डेयरी मंत्री प्रमोद जैन भाया ने कोटा जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ (कोटा डेयरी) में एक फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाने के मामले में डेयरी के प्रबंध निदेशक श्यामबाबू वर्मा, लेखाधिकारी अखिलेश सक्सेना तथा फर्म संचालक के खिलाफ राजस्थान राज्य डेयरी फेडरेशन (आरसीडीएफ) को कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन आरसीडीएफ प्रबंधन ने मंत्री के आदेश को दबा दिया और कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति की तैयारी की जा रही है, जबकि सहकारिता विभाग और एसीबी लांच में गड़बड़झाला साबित हो चुका है। डेयरी मंत्री के निर्देश पर पिछले दिनों आरसीडीएफ का जांच दल कोटा डेयरी आया था और दस्तावेजी सबूत जुटाकर लौट गया, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सहकारिता विभाग की जांच रिपोर्ट भी आरसीडीएफ को मिल चुकी है। डेयरी एमडी और लेखाधिकारी कार्रवाई से बचने के लिए जुगाड़ में लगे हुए हैं। जयपुर में अधिकारियों व कांग्रेस नेताओं के यहां चक्कर लगा रहे हैं। डेयरी अधिकारी कोटा जिले के एक विधायक के पास पहुंचते तो उन्होंने फटकारते हुए लौटा दिया। कोटा डेयरी अध्यक्ष श्रीलाल गुंजल भी चित्रांश पूर्व सैनिक बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति के माध्यम से अपने रिश्तेदारों की डेयरी में एन्ट्री करवाता था। डेयरी प्रबंधन फर्म द्वारा श्रम विभाग का फर्जी लाइसेंस लगाने डेयरी में ठेका लेने के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
यह था मामला

चित्रांश पूर्व सैनिक बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति की ओर से निविदा प्रपत्र के साथ लाइसेंस संख्या 142/2014, जो दिनांक 12 दिसम्बर 2014 को श्रम विभाग की ओर से जारी किया गया था, को डेयरी में निविदा पत्र के साथ जमा किया जाना अंकित है। डेयरी अधिकारियों ने जांच अधिकारी के समक्ष एक ही क्रमांक का अलग-अलग तिथियों में जारी लेबर लाइसेंस की प्रति पेश थी। एक ही नम्बर के दो लाइसेंस एक ही कार्यालय की ओर से पृथक-पृथक दिनांकों में जारी किया जाना संभव नहीं है। सहकारिता विभाग के जांच अधिकारी ने बूंदी के श्रम विभाग कार्यालय से इस प्रमाण पत्र के बारे में जानकारी मांगी तो पाया कि 12 दिसम्बर 2014 को उनके कार्यालय से चित्रांाश सहकारी समिति को कोई लेबर लाइसेंस जारी नहीं किया गया। लाइसेंस पूर्णतया अवैध पाया गया। उक्त लाइसेंस के फर्जी, कूटरचित एवं अवैध होने की जानकारी प्रबंध निदेशक श्यामबाबू वर्मा और लेखाधिकारी अखिलेश सक्सेना को भी थी, फिर भी दोनों अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस फर्म के पक्ष में निविदा स्वीकृत कर दी।
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