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राजस्थान में यहां 8वीं के बाद छूट जाती है बेटियों की पढ़ाई, जिंदगीभर दिल में रहता मलाल

locationकोटाPublished: Dec 12, 2019 12:16:22 pm

Submitted by:

​Zuber Khan

कोटा जिले के लखावा गांव के 3 हजार से ज्यादा परिवार मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। यहां 8 के बाद बेटियों की पढ़ाई छूट जाती है।

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राजस्थान में यहां 8वीं के बाद छूट जाती है बेटियों की पढ़ाई, जिंदगीभर दिल में रहता मलाल

कोटा. नगर निगम क्षेत्र का वार्ड 6 लखावा गांव आज भी मूलभूत सुिवधाओं से वंचित है। करीब 3 हजार से ज्यादा आबादी वाले इस गांव में निगम सीमा में आने के बाद भी कोई भी विकास कार्य नहीं हुए। सड़क-नालियां तक नहीं हैं। घरों का पानी सड़क पर फैला होने से पैदल निकलना भी मुश्किल होता है। ग्रामीण नारकीय जिंदगी जी रहे हैं। गांव में मुक्तिधाम तक नहीं। यहां सरकारी स्कूल आठवीं तक ही है। इस कारण गांव की बेटियों को तो आठवीं के बाद पढ़ाई छोडऩे की मजबूरी है।
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गलियों में पैदल निकलना भी मुश्किल
स्थानीय निवासी दिनेश सिंह पंवार ने बताया कि गांव की गलियों में नालियां व खरंजा या सड़क नहीं बनने से घरों का सारा पानी गलियों में भरा रहता है। गलियों में पैदल तक नहीं निकल सकते। बारिश के दिनों में तो हालात और विकट हो जाते हैं। स्थानीय पार्षद, पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत से लेकर वर्तमान विधायक कल्पना देवी तक से ग्रामीण नाली-खुरंजा बनाने के लिए आग्रह कर चुके। विधायक राजावत चुनाव के समय गांव में आते और आश्वासन देकर चले जाते। वहीं विधायक कल्पना देवी भी चुनाव के बाद से आज तक गांव में नहीं आईं।

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पढ़ाई छूटने की टीस
लड्डूलाल भील ने बताया कि गांव में आठवीं तक सरकारी स्कूल है। इसके बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए रानपुर या कोटा भेजना पड़ता है। दोनों जगहों की दूरी ज्यादा होने व साधनों के अभाव में ग्रामीण बेटियों को तो अकेले स्कूल नहीं भेजते। इसके चलते आठवीं के बाद बालिकाओं को पढ़ाई छोडऩी पड़ती है। गांव में एक दर्जन से ज्यादा ऐसी बालिकाएं हैं जो पढऩा तो चाहती हैं, लेकिन स्कूल 10-15 किलोमीटर दूर होने व साधनों के अभाव में नहीं पढ़ पा रहीं।
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डिस्पेंसरी नहीं, इलाज में परेशानी
गांव में डिस्पेंसरी नहीं होने से इलाज के लिए मरीजों को कोटा जाना पड़ता है। छोटी-मोटी बीमारी के लिए भी दूर जाने से ग्रामीण परेशान हैं। इससे समय के साथ धन की बर्बादी भी होती है। स्थानीय निवासी नन्दलाल गुर्जर ने बताया कि गांव में बंदरों का भी आतंक है। निगम में शिकायत के बाद दो दिन तक बंदर पकडऩे की गाड़ी आई और करीब 10-15 बंदरों को पकड़कर ले गई। अभी भी गांव में करीब 40-45 बंदर हैं, जिनके आतंग से ग्रामीण काफी परेशान हैं।
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