सीधा सा मतलब है..खर्चा, खर्चा और खर्चा। वो भी 100-200 करोड़ नहीं। 7 के पीछे 12 शून्य लगालो इतना। यानि 70 हजार करोड़ । ये अनुमान है अमरीकी एजेंसी का जिसके मुताबिक 2019 का लोकसभा चुनाव 2016 के अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में हुए खर्च का रेकॉर्ड तोड़ देगा। साथ ही ये आंकड़ा लगभग 70 हजार करोड़ के आसपास होगा। इससे पहले एक एजेंसी का अनुमान 50 हजार करोड़ का था।
प्रति वोटर खर्च 600-700 रुपए
देश की 60 फीसदी आबादी रोजाना 200 रुपए की आमदनी में अपना गुजारा करती है, वहां आम चुनाव में प्रति वोटर 400-600 रुपए का खर्च होने का अनुमान है। ये आंकड़े चौकाने वाले है।
यह है बड़ी वजह
150 करोड़ की आबादी और 90 करोड़ मतदाता वाले देश में एख साथ चुनाव कराना आसान नहीं है। इसके लिए अनगिनत संसाधनो, मैनपावर की जरूरत होती है। 2014 के चुनाव में करीब 81.5 करोड़ लोग वोट देने योग्य थे लेकिन केवल 55 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। अनुमान है कि देशभर में मतदान के दौरान प्रयोग की जाने वाली स्याही पर होने वाले खर्च का अनुमान 32 करोड़ का है।
देश की 60 फीसदी आबादी रोजाना 200 रुपए की आमदनी में अपना गुजारा करती है, वहां आम चुनाव में प्रति वोटर 400-600 रुपए का खर्च होने का अनुमान है। ये आंकड़े चौकाने वाले है।
यह है बड़ी वजह
150 करोड़ की आबादी और 90 करोड़ मतदाता वाले देश में एख साथ चुनाव कराना आसान नहीं है। इसके लिए अनगिनत संसाधनो, मैनपावर की जरूरत होती है। 2014 के चुनाव में करीब 81.5 करोड़ लोग वोट देने योग्य थे लेकिन केवल 55 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। अनुमान है कि देशभर में मतदान के दौरान प्रयोग की जाने वाली स्याही पर होने वाले खर्च का अनुमान 32 करोड़ का है।
3 दशक से यहां है भाजपा का कब्जा, प्रदेश की इस हाई प्रोफाइल सीट पर वसुंधरा राजे ही एकमात्र चेहरा.. सोशल मीडिया का तूफान
आम चुनावों में इस बार परम्परागत प्रचार के साथ सोशल मीडिया का भी बोलबाला रहेगा। 2014 में जहां स्मार्टफोन यूजर की संख्या 15 करोड़ थी वहीं इन चुुनावों में ये संख्या 45 करोड़ के पार पहुंच गई है। 2014 में जहां भाजपा ने सोशल मीडिया को प्रचार का हथियार बनाया था वहीं इस बार तमाम राजनीतिक पार्टियों के अपने सोशल मीडिया वार रूम है। पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले खर्च का आंकड़ा 5000 करोड़ रहने का अनुमान है।
आम चुनावों में इस बार परम्परागत प्रचार के साथ सोशल मीडिया का भी बोलबाला रहेगा। 2014 में जहां स्मार्टफोन यूजर की संख्या 15 करोड़ थी वहीं इन चुुनावों में ये संख्या 45 करोड़ के पार पहुंच गई है। 2014 में जहां भाजपा ने सोशल मीडिया को प्रचार का हथियार बनाया था वहीं इस बार तमाम राजनीतिक पार्टियों के अपने सोशल मीडिया वार रूम है। पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले खर्च का आंकड़ा 5000 करोड़ रहने का अनुमान है।