देश की 60 फीसदी आबादी रोजाना 200 रुपए की आमदनी में अपना गुजारा करती है, वहां आम चुनाव में प्रति वोटर 400-600 रुपए का खर्च होने का अनुमान है। ये आंकड़े चौकाने वाले है।
यह है बड़ी वजह
150 करोड़ की आबादी और 90 करोड़ मतदाता वाले देश में एख साथ चुनाव कराना आसान नहीं है। इसके लिए अनगिनत संसाधनो, मैनपावर की जरूरत होती है। 2014 के चुनाव में करीब 81.5 करोड़ लोग वोट देने योग्य थे लेकिन केवल 55 करोड़ लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। अनुमान है कि देशभर में मतदान के दौरान प्रयोग की जाने वाली स्याही पर होने वाले खर्च का अनुमान 32 करोड़ का है।
आम चुनावों में इस बार परम्परागत प्रचार के साथ सोशल मीडिया का भी बोलबाला रहेगा। 2014 में जहां स्मार्टफोन यूजर की संख्या 15 करोड़ थी वहीं इन चुुनावों में ये संख्या 45 करोड़ के पार पहुंच गई है। 2014 में जहां भाजपा ने सोशल मीडिया को प्रचार का हथियार बनाया था वहीं इस बार तमाम राजनीतिक पार्टियों के अपने सोशल मीडिया वार रूम है। पार्टियों द्वारा सोशल मीडिया पर होने वाले खर्च का आंकड़ा 5000 करोड़ रहने का अनुमान है।