विद्यार्थियों के
तनाव को कम करने के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ सैकेंडरी एजुकेशन ने वर्ष-2020 से मैथमेटिक्स विषय में विद्यार्थियों को स्टैंडर्ड एवं बेसिक में से किसी एक विकल्प को चुनने की स्वतंत्रता दे दी। इसके चलते विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में आगामी दसवीं बोर्ड-2020 की परीक्षा मैथमेटिक्स-बेसिक से देने का निर्णय किया है।
सीबीएसई ने संबद्ध सभी विद्यालयों से बोर्ड परीक्षाओं में सम्मिलित होने वाले विद्यार्थियों की एलओसी अर्थात लिस्ट ऑफ कैंडिडेट्स मांगी थी। गत 30 सितंबर एलओसी ऑनलाइन डिपॉजिट करने की अंतिम तिथि थी। जिसमें सामने आया है कि अधिकांश बच्चों ने मैथमेटिक्स बेसिक का विकल्प चुना गया। विद्यार्थियों का यह रुझान बताता है कि मैथमेटिक्स विषय निश्चित तौर पर विद्यार्थियों में तनाव उत्पन्न कर रहा था। अब यह सभी विद्यार्थी तनाव मुक्त होकर बोर्ड परीक्षा में सम्मिलित हो सकेंगे।
नवीं-दसवीं की गणित से तनाव ज्यादा
राष्ट्रीय स्तर की संस्था नेशनल फ ोकस गु्रप ने वर्तमान परीक्षा प्रणाली से विद्यार्थियों में उत्पन्न होने वाले तनाव का अध्ययन किया तो पाया कि कठिन विषयों की परीक्षा के दौरान विद्यार्थी अधिकतम तनाव के दौर से गुजरता है। गणित का प्रश्न पत्र नवीं एवं दसवीं के विद्यार्थियों में अधिकतम तनाव उत्पन्न करता है। इसी तनाव को कम करने की दिशा में यह कदम उठाया गया।
फेल होने पर बदला जा सकता है विकल्प नेशनल फोकस ग्रुप द्वारा सुझाव पर अमल करते हुए सीबीएसई ने महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यदि विद्यार्थी मैथमेटिक्स स्टैंडर्ड लेकर दसवीं बोर्ड 2020 की परीक्षा देता है। यदि वह फेल हो जाता है तो वह मैथमेटिक्स बेसिक से कंपार्टमेंट दे सकता है, क्योंकि यदि विषय चुनने में एक बार गलती हो जाए तो आप उस गलती को सुधार सकते हैं। मैथमेटिक्स बेसिक का स्तर मैथमेटिक्स स्टैंडर्ड से कम है। ऐसे में विद्यार्थी आसानी से मैथमेटिक्स बेसिक को पास कर सकता है।
विकल्प का नकारात्मक पहलू भी
एक्सपर्ट देव शर्मा ने बताया कि मैथमेटिक्स बेसिक चुनने का विकल्प विद्यार्थियों को एक नकारात्मक दिशा में भी ले जा सकता है। आसान रास्ते को चुनना मानव का सहज-स्वभाव है, ऐसा ना हो कि मैथमेटिक्स बेसिक जैसे आसान विकल्प के उपलब्ध होने पर विद्यार्थी गणित जैसे तार्किक विषय को अनावश्यक तौर पर अरुचि कर समझते हुए पल्ला झाडऩे लगें।
यदि ऐसा होता है तो आने वाले समय में गणित विषय पढऩे वाले विद्यार्थियों की संख्या में कमी आ सकती है। गणित विषय के विद्यार्थियों की संख्या में यह कमी बेहतर वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों के निर्माण में बाधा उत्पन्न कर देश को तकनीकी प्रतिभाओं से वंचित कर सकती है। ऐसे में
मैथमेटिक्स को रुचिकर बनाकर पढ़ाने की महती आवश्यकता है।