कोटा में गुण्डों के पीछे दौड़ी रानी मुखर्जी, बदमाशों को जमकर मारे थप्पड़
शहर के एडवोकेट विवेक नंदवाना ने बताया कि फिल्म बनाना अलग बात है, इससे शहर के हित प्रभावित होते हैं तो लोगों की भावनाएं भी आहत होती है। फिल्मकार अपनी फिल्म में कुछ भी दिखाने को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ते हैं। शायद वे खुश भी होंगे, जिस कंट्रोवर्सी की उन्हें तलाश रहती है। वह कोटा में विरोध के बाद मिल भी गई होगी। सवाल यह है कि कोटा में देश भर के बच्चे आते हैं। उनके माता पिता इस शहर पर भरोसा कर उन्हें यहां भेजते हैं। इन बच्चों द्वारा खर्च किए गए धन से ही यहां हजारों लोगों के रोजगार का सृजन होता है। कोटा में अपराध दिखा कर वे देश भर को यह संदेश तो दे ही देंगे कि कोटा में उनके बच्चे सुरक्षित नहीं होंगे। वे फिल्म के आधार पर धारणा बनाएंगे, कोटा आ कर यहां का क्राइम रिकार्ड नहीं देखेंगे। पिछले कुछ सालों से दूसरे शहरों के कोचिंग संचालक कभी कोटा में होने वाले सुसाइड को तो कभी यहां के कथित अपराध को हवा दे कर देश भर के अभिभावकों को यह बताना चाहते हैं कि कोटा रहने लायक शहर नहीं है।