रावण का पुतला सिर्फ दो हिस्सों में ही टूटा नहीं था, बल्कि उसके कपड़े तक फटे हुए थे। आतिशगर इस कदर नौसिखिए थे कि उन्होंने पुतले के अंदर आतिशबाजी रखने की बजाय उसके धड़ पर पटाखों की लड़ी लटका दी थी। जिसके चलते जब कमर से नीचे के हिस्से में आग लगाई गई तो वह जल गया, लेकिन धड़ आग नहीं पकड़ सका। बाद में आतिशबाजी छोड़कर रावण की तलवार जलाई गई, लेकिन उसकी चिंगारियां इतनी कमजोर थीं कि धड़ पर लटकी पटाखों की लड़ी तक नहीं पहुंच सकी। स्थिति हास्यास्पद होती देख विजय रंगमंच की छत पर बैठे आतिशगरों ने पीछे से हवाइयां छोड़कर पुतले में आग लगाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन एक भी आतिशबाजी निशाने पर नहीं लगी। हालांकि सीने पर लटकी पटाखों की लड़ी से एक बारगी धड़ ने आग पकड़ी जरूर, लेकिन वह भभक कर पूरा पुतला नहीं जला सकी।
करीब 25 मिनट की कोशिशों के बावजूद भी जब रावण का दहन नहीं हो सका तो आतिशगरों ने हास्यास्पद होते हालात से बचने के लिए पीछे लगी रस्सियां खींचकर उसे नीचे गिराने की कोशिश की। गनीमत यह रही कि रावण का धड़ आगे की ओर गिरने के बजाय विजयश्री रंजमंच की छत पर गिर पड़ा। पुतला गिरने से रंगमंच की छत पर खड़े पुलिस कर्मी और आतिशगर भी चपेट में आते आते बचे। इसके बाद करीब 10 मिनट तक पूरे मेला मैदान में अफरा तफरी का माहौल बन गया।
गिराने के बाद भी जब दशकंधर के दसों सिर नहीं जले तो आतिशगरों ने उन्हें जलाने की कोशिश की, लेकिन इस हड़बड़ी के चलते रंगमंच की छत पर बिछे बिजली के तारों ने आग पकड़ ली। आग भभकते देख सहायक अग्निशमन अधिकारी देवेंद्र गौतम फायर कर्मियों को लेकर भागे और उन्होंने जैसे तैसे आग बुझाई। इसके बाद विजयश्री रंगमंच की बिजली काटी गई और फायर ब्रिगेड बुलाकर रावण के पुतले पर पानी की तेज धार मारकर छत पर लगी आग बुझाई गई। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद जब रावण के दस में से एक भी सिर नहीं जला तो आतिशगरों ने उसे रस्सों से खींचकर तोड़ा और बोरों में भरकर रंगमंच के ब्लैक रूम में ले गएा।
जंग लगे एंगल पर खड़ा किया पुतला निगम कर्मचारियों ने बताया कि पुतला खड़ा करने के लिए कारीगरों ने श्रीराम रंगमंच के बाहर पड़े लोहे के पाइप इस्तेमाल किए थे। जिनमें पहले से ही जंग लगा था। इसकी जानकारी आला अफसरों को भी दे कारीरगों को ऐसा न करने से रोकने की कोशिश भी की, लेकिन हर किसी ने अनसुना कर दिया। रावण के पुतले में जब आग लगाई गई तो कमर से नीचे का हिस्सा काफी कोशिशों के बाद जला, लेकिन उसकी गर्मी से जंग लगे पाइप टूट गए। ऐसे में जब पुतला आगे की ओर गिरता दिखाई पड़ा तो वीआईपी अतिथियों को बचाने के चक्कर में उसे पीछे की तरफ खींचा गया। पुतले में आतिशबाजी भरने के बजाय कारीगरों ने श्रीराम रंगमंच में आतिशबाजी चलाने का कार्यक्रम रखा। जिसकी वजह से पुतला खोखला रह गया और उसमें आग तक नहीं लग पाई।
मेलाधिकारी कीर्ति राठौड़ से जब राष्ट्रीय दशहरा मेले पर लगे दाग और शर्मनाक हालात पैदा होने की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि इस बार बरसात ज्यादा हुई थी इसीलिए पुतलों में नमी आ गई। पुतले सील गए थे इसीलिए अच्छी तरह नहीं जल पाए। रावण का धड़ टूटा होने के बारे में उन्होंने कहा कि यह पुतला तो ऐसा ही बनता है।
रावण दहन के प्रभारी नगर निगम के एक्सईएन एक्यू कुरैशी ने कहा आग और पानी पर किसी का बस नहीं चलता। यह प्राकृतिक चीजें हैं इसीलिए पुतला नहीं जला तो क्या कर सकते हैं। घटना के लिए पूरीतरह आग, पानी और प्रकृति जिम्मेदार है। पहले 72 फीट का रावण का पुतले का दहन होता था, इस बार 101 फीट का दहन हुआ है। पहली बार 17 मिनट रावण दहन हुआ है। अधिक देर जलने के कारण लोहे की एंगल झुक गई है। इस कारण रावण के पुतले के सिर गए थे।