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रावण दहन पर निगम में बवाल, महापौर बोले, शर्मनाक घटना, दागदार हुआ इतिहास..बिठाई जांच

locationकोटाPublished: Oct 09, 2019 08:07:22 pm

Submitted by:

Rajesh Tripathi

सवा सौ साल के इतिहास में पहली बार नहीं जला दशानन का एक भी सिर, निगम अधिकारी पानी और आग को ठहराते रहे जिम्मेदार, महापौर ने बिठाई जांच

रावण दहन पर निगम में बवाल, महापौर बोले, शर्मनाक घटना, दागदार हुआ इतिहास..बिठाई जांच

रावण दहन पर निगम में बवाल, महापौर बोले, शर्मनाक घटना, दागदार हुआ इतिहास..बिठाई जांच

कोटा. कागज के बने फटे कपड़े… टूटे धड़ और खोखले जिस्म के बावजूद दसकंधर रावण दशहरा मैदान में ऐसा अड़ा कि निगम अफसरों और आतिशगरों की लाख कोशिशों के बाद भी उसका एक भी सिर नहीं जल सका। आखिर में आतिशगरों ने पुतले की रस्सियां खींच उसे नीचे गिरा कर रावण वध की रस्म अदायगी की। सवा सौ साल के इतिहास में पहली बार रावण के न जलने पर मेला अधिकारी आग और पानी को जिम्मेदार ठहराते रहे। वहीं महापौर और मेला आयोजन समिति ने इस अराजकता के लिए अफसरों को आड़े हाथों लिया। फिलहाल पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए पार्षदों की तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर दी गई है। 126 वें राष्ट्रीय दशहरा मेला को यादगार बनाने के लिए इस बार 101 फीट ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण किया गया था, लेकिन मंगलवार को जैसे ही लाखों लोगों की भीड़ दशहरा मैदान में पहुंची तो रावण के पुतले को दो टुकड़ों में बंटा देख हैरत में पड़ गई। कारीगर रावण के पुतले का धड़ और कमर से नीचे का हिस्सा आखिरी समय तक नहीं जोड़ सके। जिसके चलते दोनों के बीच करीब छह से सात फीट का गैप रह गया।
पुतलों में नहीं था दम
रावण का पुतला सिर्फ दो हिस्सों में ही टूटा नहीं था, बल्कि उसके कपड़े तक फटे हुए थे। आतिशगर इस कदर नौसिखिए थे कि उन्होंने पुतले के अंदर आतिशबाजी रखने की बजाय उसके धड़ पर पटाखों की लड़ी लटका दी थी। जिसके चलते जब कमर से नीचे के हिस्से में आग लगाई गई तो वह जल गया, लेकिन धड़ आग नहीं पकड़ सका। बाद में आतिशबाजी छोड़कर रावण की तलवार जलाई गई, लेकिन उसकी चिंगारियां इतनी कमजोर थीं कि धड़ पर लटकी पटाखों की लड़ी तक नहीं पहुंच सकी। स्थिति हास्यास्पद होती देख विजय रंगमंच की छत पर बैठे आतिशगरों ने पीछे से हवाइयां छोड़कर पुतले में आग लगाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन एक भी आतिशबाजी निशाने पर नहीं लगी। हालांकि सीने पर लटकी पटाखों की लड़ी से एक बारगी धड़ ने आग पकड़ी जरूर, लेकिन वह भभक कर पूरा पुतला नहीं जला सकी।
गिराकर किया रावण का अंत
करीब 25 मिनट की कोशिशों के बावजूद भी जब रावण का दहन नहीं हो सका तो आतिशगरों ने हास्यास्पद होते हालात से बचने के लिए पीछे लगी रस्सियां खींचकर उसे नीचे गिराने की कोशिश की। गनीमत यह रही कि रावण का धड़ आगे की ओर गिरने के बजाय विजयश्री रंजमंच की छत पर गिर पड़ा। पुतला गिरने से रंगमंच की छत पर खड़े पुलिस कर्मी और आतिशगर भी चपेट में आते आते बचे। इसके बाद करीब 10 मिनट तक पूरे मेला मैदान में अफरा तफरी का माहौल बन गया।
समेटना पड़ा दशकंधर
गिराने के बाद भी जब दशकंधर के दसों सिर नहीं जले तो आतिशगरों ने उन्हें जलाने की कोशिश की, लेकिन इस हड़बड़ी के चलते रंगमंच की छत पर बिछे बिजली के तारों ने आग पकड़ ली। आग भभकते देख सहायक अग्निशमन अधिकारी देवेंद्र गौतम फायर कर्मियों को लेकर भागे और उन्होंने जैसे तैसे आग बुझाई। इसके बाद विजयश्री रंगमंच की बिजली काटी गई और फायर ब्रिगेड बुलाकर रावण के पुतले पर पानी की तेज धार मारकर छत पर लगी आग बुझाई गई। हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद जब रावण के दस में से एक भी सिर नहीं जला तो आतिशगरों ने उसे रस्सों से खींचकर तोड़ा और बोरों में भरकर रंगमंच के ब्लैक रूम में ले गएा।

जंग लगे एंगल पर खड़ा किया पुतला

निगम कर्मचारियों ने बताया कि पुतला खड़ा करने के लिए कारीगरों ने श्रीराम रंगमंच के बाहर पड़े लोहे के पाइप इस्तेमाल किए थे। जिनमें पहले से ही जंग लगा था। इसकी जानकारी आला अफसरों को भी दे कारीरगों को ऐसा न करने से रोकने की कोशिश भी की, लेकिन हर किसी ने अनसुना कर दिया। रावण के पुतले में जब आग लगाई गई तो कमर से नीचे का हिस्सा काफी कोशिशों के बाद जला, लेकिन उसकी गर्मी से जंग लगे पाइप टूट गए। ऐसे में जब पुतला आगे की ओर गिरता दिखाई पड़ा तो वीआईपी अतिथियों को बचाने के चक्कर में उसे पीछे की तरफ खींचा गया। पुतले में आतिशबाजी भरने के बजाय कारीगरों ने श्रीराम रंगमंच में आतिशबाजी चलाने का कार्यक्रम रखा। जिसकी वजह से पुतला खोखला रह गया और उसमें आग तक नहीं लग पाई।
जिम्मेदार बोले.. पानी और आग जिम्मेदार
मेलाधिकारी कीर्ति राठौड़ से जब राष्ट्रीय दशहरा मेले पर लगे दाग और शर्मनाक हालात पैदा होने की वजह पूछी गई तो उन्होंने कहा कि इस बार बरसात ज्यादा हुई थी इसीलिए पुतलों में नमी आ गई। पुतले सील गए थे इसीलिए अच्छी तरह नहीं जल पाए। रावण का धड़ टूटा होने के बारे में उन्होंने कहा कि यह पुतला तो ऐसा ही बनता है।
आग और पानी पर किसी का वश नहीं
रावण दहन के प्रभारी नगर निगम के एक्सईएन एक्यू कुरैशी ने कहा आग और पानी पर किसी का बस नहीं चलता। यह प्राकृतिक चीजें हैं इसीलिए पुतला नहीं जला तो क्या कर सकते हैं। घटना के लिए पूरीतरह आग, पानी और प्रकृति जिम्मेदार है। पहले 72 फीट का रावण का पुतले का दहन होता था, इस बार 101 फीट का दहन हुआ है। पहली बार 17 मिनट रावण दहन हुआ है। अधिक देर जलने के कारण लोहे की एंगल झुक गई है। इस कारण रावण के पुतले के सिर गए थे।
महापौर को लगा शर्मनाक घटना, दागदार हुआ इतिहास

घटना के तुरंत बाद महापौर महेश विजय ने रावण का दहन न हो पाने की घटना को रियासतकालीन कोटा दशहरा मेले पर बड़ा दाग करार देते हुए कहा कि यह बेहद शर्मनाक है। इसके लिए पूरी तरह से निगम के अधिकारी जिम्मेदार हैं। पूर्व निगम आयुक्त एनके गुप्ता और मेला अधिकारी कीर्ति राठौड़ से कहा था कि अनुभवी हाथों में काम सौंपें लेकिन उन्होंने चहेतों को ठेका देने के चक्कर में कोटा की फजीहत करा दी। मेले से जुड़े कामों में इस कदर अडिय़ल रवैया अख्तियार किया गया कि आयोजन शुरू होने से पहले प्रस्तावित यज्ञ तक को र² कर दिया गया। परंपराओं की अवहेलना और अराजकता की वजह से रावण न जलने की शर्मनाक घटना झेलनी पड़ी। जिम्मेदारी तय करने के लिए तीन पार्षदों की समिति गठित कर दी गई है। जो पूरे मामले की जांच कर जल्द से जल्द रिपोर्ट देगी। वहीं मेला कमेटी के अध्यक्ष मोहन मित्रा ने कहा कि अफसरों के अडिय़ल रवैये के कारण आज पूरे कोटा को शर्मसार होना पड़ा।
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