मिसाल : दो जिंदगियां बचाने के लिए इन्होंने तोड़ा ईष्ट देव का व्रत क्षेत्र के अमृतखेड़ी व पामलाखेड़ी मुस्लिम बाहुल्य गांवों में आज भी कई मुस्लिम परिवारों में किसी के पास पांच से छह तो किसी के पास इससे भी ज्यादा गाय है। रोजाना गायों की साफ-सफाई और उन्हें नहलाना, चारा खिलाना और बाद में गायों का दूध निकालकर उसे बेचना इन परिवारों के जीवन का एक हिस्सा बन गया है। एक ऐसा ही परिवार है पामलाखेड़ी निवासी हाजी अब्दुल अलीम का। 79 वर्षीय अलीम के परिवार में आठ गाय है।
मदद की दरकार: खून के एक-एक कतरे को मोहताज हुआ रईस पूरा परिवार दिन-रात गायों की सार संभाल में जुटा रहता है। अब्दुल अलीम की माने तो वो बीस साल की उम्र से गायों की सार संभाल कर रहे हैं। गायों का पौष्टिक दूध पीकर बड़े हुए और इस उम्र में भी वो खेत-खलिहानों का काम कर लेते हैं।
बन रही मददगार परिवार के युवक मोहम्मद नासिर ने बताया कि गायों के दूध से परिवार में थोड़ी आर्थिक मदद भी मिल जाती है। घर में काम आने लायक दूध रखते हैं और शेष को बेच देते हैं। चारे की कमी ना आए इसके लिए अपने खेत पर ही हरा चारा उगा रखा है। दिनभर सभी गाय यहां चरती रहती है। बारिश में गायों को परेशानी ना हो इसके लिए अभी खेत में ही छाया स्थल बना रहे है। गौ पालन अब इनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है।