शहर से रोजाना निकलने वाले 551 मेट्रिक टन कूड़े की छंटनी किए बगैर निगम उसे ट्रेचिंग ग्राउंड पर फेंक देता है। कूड़े के समुचित निस्तारण का कोई इंतजाम नहीं होने के कारण ढेर में मीथेन गैस पैदा होने लगती है, जो तापमान बढ़ते ही आग पकड़ लेती है और पूरा इलाका जहरीले धुएं की चपेट में आ जाता है। कूड़े के संक्रमित कण हवा के साथ उड़कर लोगों की सांसों में जहर घोल रहे हैं। जांच के दौरान आरएसपीसीबी को ट्रेंचिंग ग्राउंड के आसपास की हवा में खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम-10) की मात्रा मानकों से नौ गुना ज्यादा मिली।
पानी की कठोरता तिगुनी से भी ज्यादा
ट्रेंचिंग ग्राउंड में 16 साल से सड़ रहे कूड़े का जहर अब भूमिगत जल श्रोतों में भी घुलने लगा है। जिसके चलते पानी की कठोरता तय मानकों से तिगुनी से भी ज्यादा हो गई है। नतीजन, इस इलाके का पानी इंसान तो दूर जानवरों के पीने लायक भी नहीं बचा है। पानी की गुणवत्ता इस कदर खराब हो चुकी है कि इससे कपड़े धोना तो दूर फर्श और गाड़ी तक साफ नहीं की जा सकती। भूमिगत जल में तिगुनी से ज्यादा हो चुकी लवणता नमक जैसी सफेद पर्त जमा देती है। टीडीएस, क्लोराइड और केल्सियम की मात्रा भी जानलेवा स्तर तक जा पहुंची है।
स्थानीय लोगों की शिकायत के बाद नान्ता ट्रेंचिंग ग्राउंड और बायोलॉजिकल गार्डन के साथ-साथ आसपास के इलाकों से मार्च में हवा और पानी के नमूने लिए थे। जिनसे हवा और पानी के काफी प्रदूषित होने की रिपोर्ट आई थी। इसी के बाद नगर निगम को नान्ता मानकों के मुताबिक कूड़े के निस्तारण का नोटिस जारी किया गया था। इसके बाद भी कार्रवाई न होने पर आपराधिक मामला दर्ज करने की मुख्यालय को सिफारिश की गई।
अमित शर्मा, तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोटा