शहर में किशोरपुरा, आरकेपुरम, रंगबाड़ी, कंसुआ, छावनी, बोरखेड़ा, रायपुरा, नयापुरा, कुन्हाड़ी, स्टेशन व नांता सहित करीब 15 मुक्तिधाम है। इन मुक्तिधामों पर शवों का अंतिम संस्कार लकडिय़ों से ही किया जाता है। केवल किशोरपुरा में इलेक्ट्रानिक शवदाह गृह है, लेकिन यहां भी अधिकांश लावारिश शवों का ही अंतिम संस्कार किया जाता है। गिने चुने लोग ही यहां अंतिम संस्कार करते है।
किशोरपुरा मुक्तिधाम के बाहर दो लकडिय़ों की टाले लगी हुई है। टाल मालिक प्रभूलाल मेघवाल ने बताया कि जनता कफ्र्यू के दिन से ही लकडिय़ां नहीं मिल पा रही। मजदूर भी चले गए। इस मुक्तिधाम पर रोजना करीब 4 से 5 शव आते है, कभी कभार 10-12 भी आ जाते है। एक शव के अंतिम संस्कार के लिए चार से पांच क्विंटल लकडिय़ों की जरूरत पड़ती है। इस हिसाब से टाल पर केवल दो दिन का स्टॉक है। अगर शवों की संख्या ज्यादा हो जाए तो फिर एक ही दिन काम चल पाएगा। इसी तरह सुभाषनगर मुक्तिधाम पर टाल मालिक सन्नी डागर ने बताया कि यहां रोजाना 1 से 2 शव अंतिम संस्कार के लिए आते है। यहां पर केवल पांच दिन का स्टॉक है। शहर के अन्य मुक्तिधामों पर 21 दिन के लॉक डाउन से पहले ही स्टॉक खत्म हो जाएगा।
टाल संचालकों का कहना था कि जब तक हमारे पास लकडिय़ों का स्टॉक है जब तक तो कई समस्या नहीं है। लेकिन इसके बाद मुक्तिधामों में लकडिय़ों की व्यवस्था अंतिम संस्कार करने वालों को स्वयं ही करनी पड़ेगी। शहर में यह समस्या जल्दी ही आने वाली है। मुक्तिधामों पर आने वाली इस समस्या के लिए प्रशासन को कोई व्यवस्था की तो बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।