राज्य सरकार ने प्रदेश के 19 जिलों को केरोसिन मुक्त किया हुआ है। इनमें कोटा भी शामिल है। ऐसे में यहां केरोसिन नहीं आता। इस कारण बाहर से आने वाले इन श्रमिक परिवारों के समक्ष ईंधन की समस्या रहती है। आदिवासी श्रमिक परिवारों की महिलाएं जैसे-तैसे लंबी दूरी तय कर ईधन का इंतजाम करती हैं। जल्दी आग पकड़ लेने वाली पेड़ों की छोटी टहनियों का संग्रहण करती हैं। इन्हें ये ईंधन के तौर पर जलाते हैं। कई बार व्यवस्था नहीं होने पर इन्हें आरा मशीनों पर जाकर लकडिय़ां खरीदनी पड़ती है।
रामगंजमंडी क्षेत्र में खानाबदोश परिवारों की संख्या हजारों में है। कुदायला-अमरपुरा औद्योगिक क्षेत्र में संचालित पोलिश इकाइयों में करीब 5 हजार से ज्यादा श्रमिक परिवार हैं। इसी तरह लाइम स्टोन खदानों में करीब 7 हजार है। भवन निर्माण कार्य में मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासी परिवारों की संख्या भी हजारों में है। ज्यादातर लोगों को केन्द्र सरकार की योजना की जानकारी नहीं है। यहां इण्डेन गैस से मात्र 12 खानाबदोश परिवार रसोई गैस योजना से लाभान्वित हुए हैं।
10 हजार से ज्यादा श्रमिक परिवारों द्वारा लकड़ी का ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना प्रदूषण को बढ़ा रहा है, इनके स्वास्थ्य के लिए भी घातक। पेड़ों से टहनियां तोडऩे पर इन परिवारों को कई बार आस-पास रहने वाले लोगों के कोप का भाजन बनना पड़ता है। झगड़े होते हैं। कुछ श्रमिक अवैध छोटे गैस सिलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं, अवैध रूप से इसकी रिफलिंग करा रहे, जो खतरनाक साबित हो सकती है।
शिविर लगाने का आश्वासन
रामगंजमंडी में गैस एजेन्सी चलाने वाले कंवर सिंह गुर्जर बताते हैं कि खानाबदोश परिवारों के लिए केन्द्र सरकार की ईजी ब्ल्यू सिलेण्डर योजना है। जानकारी के अभाव में ये परिवार योजना से नहीं जुड़ पाते हैं। हम खदान बहुल क्षेत्र में शिविर लगाकर ऐसे परिवारों को लाभांवित करने की कोशिश करेंगे।