एक और शहनाई वादक कम होते जा रहे हैं वहीं मांगलिक आयोजनों में शहनाई वादन की परम्परा भी अब लुप्त होने के कगार पर है। कभी कभार किसी शादी ब्याह के आयोजन में शहनाई के सुर सुनाई दे जाते है। एक समय था जब शादी ब्याह के आयोजनों में शहनाई के सुर दिनभर सुनाई पड़ते थे। बारातियों के स्वागत सत्कार से लेकर वर वधु के फेरों के समय शहनाई वादक अपने सुरों से माहौल को अलग रंग में रंग देते थे। आज स्थिति यह है कि डीजे साउंड के गीतों के आगे अब शहनाई के सुर मानों दबते जा रहे है।
यहां एक शादी समारोह में आए शहनाई वादक ने बताया कि उनके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी शहनाई वादन की परम्परा रही है। उनके दादा-परदादा रजवाड़ों में शहनाई बजाते थे। इस कला में उन्हें अच्छा पारिश्रमिक मिलता था। लेकिन बदलते समय में अब बहुत कम शादी ब्याह में शहनाई वादन के लिए बुलाया जाता है।
नहीं मिलता पारिश्रमिक : शहनाई वादन में मेहनत के अनुरूप कलाकारों को प्रोत्साहन, संरक्षण एवं पारिश्रमिक नहीं मिल पाता। उन्होंने बताया कि कई संस्थाएं मेलों व उत्सवों में जरूर उन्हें बुलाते है। शहनाई वादन की कला से आज के समय में कलाकार परिवार का भरण पोषण भी नहीं कर पाता। इससे परिवार के नए लोग इसे सीखने में भी अब रूचि नहीं दिखाते। इसका परिणाम है कि शहनाई वादन अब बुजुर्गो तक सीमित होकर रह गया है।
…तो मिल सकता है बढ़ावा : एक जमाना था जब बिना शहनाई वादन के शादी-ब्याह की कल्पना नहीं होती थी और आयोजन फीका सा लगता था। लेकिन परम्परागत लोक शहनाई कलाकारों को सरकारी स्तर पर भी कोई मदद एवं प्रोत्साहन नहीं मिलने का मलाल हैं। कलाकारों का कहना हैं कि राजस्थानी संस्कृति की शान शहनाई वादन की कला को प्रोत्साहन मिले व सरकारी मदद मिले तो इस कला को बढ़ावा मिल सकता है। साथ ही नए कलाकार तैयार किए जा सकते है।