क्षेत्र में पान मसाले की लत किस कदर लोगों पर हावी है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यहां चाय की दुकान से लेकर नमकीन बेचने वाले के ठेलों पर लटके पाउच दर्शा रहे हैं। यहां एक माह में एक करोड़ रुपए का पान मसाला पाउच खाकर लोग थूक देते हैं जिसमें जर्दा पाउच से लेकर मि_ी सुपारी का सेवन करने वाले सभी शामिल है।
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पत्थर खदानों में कार्यरत श्रमिकों से लेकर पॉलिश फेक्ट्रियोंं में कार्यरत श्रमिकों, कृषि उपज मंडी में हम्माली करने वाले कामगार जर्दायुक्त पान मसाला के शिकार हैं तो मजदूर महिलाओं में करीब 10 प्रतिशत जर्दायुक्त गुटखा का सेवन करती है। सस्तीदर व आसानी से उपलब्धता इसका प्रमुख कारण है। खदान क्षेत्रों में बकायदा पेटियों पर पहुंचकर फेरी वाले कचौरी समोसे के साथ इन्हें बेच रहे है।
कृषि उपज मंडी समिति प्रांगण में फेरी लगाकर ठेले पर अल्पहार के सामान बेचने वाले पान मसाले के पाउच नहीं बेचे तो उनकी आमदनी शून्य है। शहरी व कस्बाई इलाकों में जर्दायुक्त पान मसाले का जबदरस्त प्रचलन है। जर्दा पान मसाले लेने के लिए लोगों को यहां भटकना नहीं पड़ता। चाय की होटलों पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मंहगे बिकने वाले पाउच ज्यादा समय तक नहीं बिकने पर जल्दी खराब होने की बात को ध्यान में रखते हुए ठेले पर सामग्री बेचने वाले व चाय के दुकानदार ऐसे पाउच नहीं रखते। महंगे पाउच पान की दुकानों पर ही मिलते हैं। कई किराना व्यापारियों ने दुकान पर आने वाला ग्राहक वापस नहीं जाए इस बात को देखते हुए पान मसाले की बिक्री को चालू किया हुआ है।
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रामगंजमंडी में जर्दायुक्त पान मसाले के साथ सामान्य पान मसाला व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि क्षेत्र में प्रति माह एक करोड़ रुपए लागत के पाउच की बिक्री होती है। पान मसाले के बढ़ते प्रचलन ने पान की दुकानें क्षेत्र में कम कर दी है। ऐसी दुकाने जिसका संचालन दुकानदार कर रहे हैं वह पान की कुल बिक्री से ज्यादा पाउच बेच रहे है।ब्लॉक मुख्य चिकित्साधिकारी रईस खान ने बताया कि पान मसाला गुटखा सुपारी खाने से मुंह व खाने की नली, आंत के केंसर की संभावना ज्यादा रहती है। मुंह में छाले होना, मुंह कम खुलना, ब्लड प्रेशर बढऩा, रक्तसंचार प्रभावित होने के साथ लकवे व हद्र्वयघात व नपुंसकता इसके सेवान से हो
सकती है।
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क्या कहते है दुकानदार
पान की दुकान लगाने वाले दुकानदारों का कहना है कि एक समय था जब ग्राहकों की भीड़ दुकान पर उमड़ती थी लोगों को पान के लिए पन्द्रह से आधा घंटे तक का समय लग जाता था। पान खाने वाले तलबगार अभी कम नहीं है, लेकिन युवापीढ़ी में पान का कल्चर घट गया है। कई लोगों को दस से पन्द्रह मिनट का पान की दुकान पर इंतजार करना रास नहीं आता वे पाउच खरीदते है पुडिय़ा फाड़कर सीधे मुंह में डालकर निकल पड़ते हैं।