कार्याध्यक्ष विमल जैन वद्र्धमान ने बताया कि सभी धर्मावलम्बियों ने अपने-अपने घरों पर रहकर ही हर्षोल्लास के साथ अष्टद्रव्यों से देव शास्त्र गुरु, पंच मेरू, उत्तम शौच, दशलक्षण धर्म आदि की पूजा अर्चना की। संध्या के समय घरों पर ही प्रतिक्रमण एवं पाठ आदि क्रियाएं करते हुए जिनेन्द्र भगवान की आरती की। इसके साथ ही पंचमेरू के उपवास करने वाले श्रद्धालुओं का चौथा उपवास पूर्ण हुआ। गुलाबचन्द चुने वाले ने बताया कि शौच धर्म का अर्थ किसी भी प्रकार का लोभ नहीं करना है। शास्त्रों के अनुसार लोभ को पाप का बाप बताया गया है। लोभ के वशीभूत होकर व्यक्ति के अनद्र क्रोध, मायाचारी, अंहकार एवं छल कपट होना स्वाभाविक है। शौच धर्म के जाग्रत होने पर व्यक्ति सरलता से कम साधन में जीवन व्यतीत कर सकता है।