चित्रकूट में पिछले दो दौरों के दरम्यान सीएम ने सड़क बिजली पानी पर्यटन रोजगार को लेकर लाखों करोङों के बजट की घोषणाएं की थी, बावजूद इसके उन योजनाओं की कच्छप गति विकास के रास्ते पर अभी भी कायम है। मसलन रामायण सर्किट योजना के तहत सीएम ने 37 करोङ रुपये की मंजूरी दी थी लेकिन कुछ दिन योजना के परवान चढ़ने के बाद उसका ग्लूकोज़ कम हो गया और सांसे फ़ूलने लगीं. दूसरी है पेयजल संकट से निपटने की योजना जिसके तहत सुसुप्तावस्था में चल रहीं क्षेत्र की विभिन्न पेयजल योजनाओं को गति देना और उन्हें पूरा करना इसके लिए भी करोङों रूपये का बजट आवंटित किया गया था परंतु धरातल पर स्थिति ज्यों की त्यों है. बात यदि लोकनिर्माण विभाग कि की जाए तो मुख्यालय स्थित बेड़ी पुलिया से रामघाट तक के लिए सड़क निर्माण हेतु लगभग 14 करोङ का बजट दिया गया परंतु न जाने किन मजबूरियों की वजह से निर्माण कार्य वेंटिलेटर पर है.
सत्तासीन होने के बाद प्रदेश के प्राचीन ऐतिहासिक और धार्मिक शहरों नगरों को विकास के पायदान पर पहले नम्बर पर खड़ा करने की महत्वाकांक्षा लेकर ताबड़तोड़ दौरे व् घोषणाएं करने वाले यूपी सीएम को शायद ही इस हकीकत से रूबरू कराया जाए कि फ्री जोन होने के बाद भी धार्मिक नगरी में श्रद्धालुओं को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता. बैरियर तो हट गए पर अपरोक्ष रूप से वसूली की जारी है चित्रकूट की यूपी एमपी सीमा पर जबकि एमपी में भी भाजपा सरकार है. सही व् उचित रैन बसेरों के न होने से तीर्थ यात्रियों को खुले आसमां के नीचे रातें गुजारनी पड़ती हैं.
नदियों को लेकर भाजपा सरकार की भीष्म प्रतिज्ञा उसे याद हो या न हो लेकर नदियों को उस प्रतिज्ञा के हिंसाब से अपने दिन बहुरने का इंतजार जरूर है. कुछ ऐसी ही तस्वीर है पवित्र मंदाकिनी नदी की जिसे सीएम से काफी उम्मीदें हैं. मंदाकिनी को प्रदूषणमुक्त बनाने की बात भी सीएम ने पिछले दौरे में कही थी परंतु वर्तमान सूरत तो और भी दयनीय है इस सदानीरा की जिससे यह साफ होता है कि खुद मुख्यमन्त्री को निगरानी करनी होगी विकासपरक योजनाओं की अन्यथा नौकरशाही का हाल तो सगेड किसी से छिपा नहीं है।