1956 में संघ के प्रतिनिधि के रूप में कोटा आए लालकृष्ण आडवाणी से दाऊदयाल जोशी की मुलाकात हुई। उन्हीं की प्रेरणा से वे संघ से जुड़ गए और श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सत्याग्रह का हिस्सा बन गए। इसके लिए उन्हें तीन माह तक जेल जाना पड़ा। जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में अपना पहला चुनाव इसी वर्ष अपने गुरु और तत्कालीन शहर कांग्रेस अध्यक्ष वैद्य कृष्णगोपाल शर्मा के खिलाफ लड़ा और 400 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। लगातार तीन बार पार्षद बने और 1966 में नगर परिषद के पहले गैर कांग्रेसी अध्यक्ष चुने गए।
आपातकाल के दौरान जब जनसंघ समेत विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं को जेल जाना पड़ा। दाऊदयाल जोशी को भी 19 महीने तक जेल की यातनाएं झेलनी पड़ी। जैसे ही आपातकाल हटाया गया और जनता पार्टी का गठन हुआ तो जोशी को पीपल्दा-सांगोद विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे का आदेश मिला। जेल के बाद तंगहाली की स्थिति और नया क्षेत्र होने की वजह से जोशी चिंतित थे। तब समर्थकों ने एक-एक रुपए का चंदा एकत्र किया, किसी शुभचिंतक ने मोटरसाइकिल का इंतजाम किया। जोशी ने इसी वाहन से पूरे क्षेत्र का दौरा किया और चुनाव जीत लिया। वे इस सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे।
तीसरी बार विधायक निर्वाचित होने तक जोशी के पास ने तो खुद की गाड़ी थी और न ही रहने को मकान। वे लगभग 50 वर्षों तक टिपटा स्थित कैलाशनाथ द्विवेदी के घर किराये से रहे।आवासान मंडल के अधिकारियों के आग्रह पर जब दादाबाड़ी में एक मकान किस्तों में लिया तब जाकर उनके समर्थकों को ये बात पता चल पाई। जोशी के नए मकान का पता था 1 न 13। नए घर में शिफ्ट होने के बाद जब समर्थक उनसे पता पूछते तो वह कहते थे, न तेरा न मेरा न बर 13, दादाबाड़ी आजा। ललित किशोर चतुर्वेदी ने पार्टी फंड से एक मोटरसाइकिल जोशी को भेंट की थी।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों में कोटा की सीट कांग्रेस ने हथिया ली। पार्टी ने अगले चुनाव में दाऊदयाल जोशी पर दांव खेला। जोशी ने इन चुनावों में शांति धारीवाल को बड़े अंतर से हराया। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि गली-गली में साफे बंधवाने के कारण लोग उनसे कहने लगे थे कि दाऊजी तो थांको साफो तो दिल्ली जावगो। दाल-बाटी चूरमा, हाड़ौती का सूरमा और हाड़ौती का एक लाल, दाऊदयाल उनसे जुड़े कुछ चर्चित नारे रहे। जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारने वाले जोशी 1998 में उनके अंतिम समय तक कोटा के सांसद रहे।
दाऊदयाल जोशी के पुत्र वैद्य मृगेन्द्र जोशी अपने पिता की यादें साझा करते हुए बताते हैं कि वैसे तो बाबूजी बड़े ही सरल स्वभाव के थे, लेकिन संसद में शोर मचाने के मामले में सबसे आगे थे। जब भी पूर्व पीएम अटलजी सत्ता पक्ष को हावी होता हुए देखते थे तो चुपके से उन्हें इशारा कर देते थे। अटलजी का इशारा पाकर वे संसद में नारेबाजी शुरू कर देते थे। उनकी गर्दन हमेशा हिलती रहती थी। उनके बारे में यह किस्सा भी चर्चित था कि वे जब जनसंपर्क पर निकलते थे तो कई बार बंद दुकानों से भी नमस्कार कर लेते थे।
हाड़ौती में भाजपा की दिग्गज चौकड़ी ललितकिशोर चतुर्वेदी, रघुवीरसिंह कौशल और हरिकुमार औदिच्य के मुकाबले दाऊदयाल जोशी उम्र में सबसे छोटे थे, लेकिन ये उनकी लोकप्रियता का प्रमाण ही था कि जब जोशी ने दुनिया को अलविदा कहा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी उन्हें श्रद्धंजलि देने कोटा आए थे। 3 बार विधायक और 3 बार सांसद रहने के बाद भी वे जरूर मंत्री नहीं बन पाए हो, लेकिन आजादी के बाद हाड़ौती में वे पहले जननेता थे, जिनकी मूर्ति का अनावरण किया गया।