राज्य सरकार, परिवहन विभाग और राजस्थान पथ परिवहन निगम ने साल 2005 में प्रदेशभर के 130 मार्गों और उनसे जुड़े सहायक मार्गों पर सरकारी बसों की सुविधा बढ़ाने के लिए यात्रीभार का आकलन कराया था। इन मार्गों पर अवैध वाहनों का धड़ल्ले से संचालन हो रहा था।
इसके चलते रोडवेज को खासा घाटा उठाना पड़ रहा था। अधिकारियों का मानना था कि इस सर्वे के मुताबिक यदि यात्रियों को सरकारी बसों की सुविधा मुहैया करा दी जाए तो रोडवेज को घाटे से उबार सकता है।
कागजी साबित हुई अधिसूचना
रूट सर्वे के मुताबिक यात्री भार के आकलन के बाद 12 मई 2005 को राज्य सरकार ने कोटा संभाग के 45 रूट और उनके सहायक मार्गों पर 489 रोडवेज बसों की उपलब्धता बढ़ाने की अधिसूचना जारी की थी। रोडवेज की माली हालत को देखते हुए निजी बसों के अनुबंध का प्रस्ताव भी रखा गया, लेकिन न तो रोडवेज ने बसें खरीदीं और न ही अनुबंधित बसों का संचालन किया।
लंबे रूट भी छोड़े
रोडवेज के अफसर संभागीय स्तर पर ही नहीं लंबे रूट पर भी बसों का इंतजाम नहीं कर सके। अजमेर और कोटा के बीच प्रस्तावित 52 बसों में से करीब 26, जयपुर, टोंक, देवली, कोटा रूट पर प्रस्तावित 119 बसों में से करीब 48 और भीलवाड़ा, बिजौलिया, बूंदी रूट पर प्रस्तावित 40 बसों में से 20 बसों का संचालन कोटा को मिलना था। इन तीनों लम्बे रूट पर यात्रियों की भारी संख्या को देखते हुए बड़े मुनाफे की उम्मीद होने के बाद भी नई बसों का संचालन नहीं किया गया।
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10 फीसदी भी नहीं मिलीं
& वर्ष 2005 के यात्री भार के मुताबिक प्रस्तावित बसों की संख्या के मुताबिक डेढ़ दशक में 10 फीसदी बसें भी नहीं मिल सकी हैं। वहीं मानव संसाधन की भी खासी कमी के चलते रोडवेज मुख्य मार्गों पर ही बसों का संचालन कर पा रहा है। इस मौके का फायदा उठाकर डग्गेमार वाहन और अवैध रूट खुलवाकर निजी बस संचालक यात्री वाहनों का संचालन कर रहे हैं। निगम इसे रोकने और संसाधन बढ़ाने की कोशिश में जुटा है।
कुलदीप शर्मा, मुख्य प्रबंधक, कोटा डिपो