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ख़ुदा के रोज़े का फरमान अदा कर रहा फरहान
मानवीय दृष्टिकोण की बात करें तो यह महीना एक-दूसरे के दर्द व खुशियों को समझने का है। रोजा रखने का तात्पर्य यह भी है कि इंसान को यह अहसास हो जाए कि आखिर जिन लोगों को एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं वे किन हालातों में जीते होंगे।
ऐसे स्थान जहां पानी नहीं मिलता होगा, कैसे रहते होंगे। जब यह समझ में आता है तो इंसान गैरों की मदद में जुट जाता है। रमजान में पांच वक्त की नमाज रोजेदार को सृष्टि के मालिक के करीब लाती है। जीवन का सही सुकून, शांति इसी बात में है।
डॉ. इमरान अली बताते हैं कि रमजान माह सेहत के दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है। माह में रोजे रखते हुए संतुलित आहार लें तो कई समस्याओं से निजात मिल जाती है। सहरी के वक्त ऐसा आहार लेना चाहिए कि दिनभर तरोताजगी महसूस हो। सूप, सलाद, ब्रेड, अंकुरित अनाज, फल रस, पोहा, फल, हलुआ दूध, दही लिए जा सकते हैं।
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एक दूसरे के मददगार बनकर इंसानियत का फर्ज अदा करना ही रमजान
शाम को रोजा अफ्तारी में तली-भूनी चीजों से दूर रहना चाहिए। इसकी जगह प्रोटिन युक्त भोजन का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें सलाद, चपाती, एक कटोरी दाल, फल, चावल, आलू, सब्जियों का सूप ले सकते हैं। बंगाली समाज का रोजा इफ्तार बंगाली समाज वेलफेयर सोसाइटी की ओर से मंगलवार को श्रीपुरा स्थित विकास भवन में रोजा इफ्तार का आयोजन किया गया। इस दौरान मुख्य अतिथि मौलाना अनीसुर्हमान ने कह कि रमजान का मकसद खुदा की इबादत करते हुए उसके बताए तरीके से जिंदगी गुजारना है।
रोजे रखने की सार्थकता इसी में है कि इस एक माह में जो अर्जित किया, शेष 11 महीनों में भी उस पर अमल रहे। कार्यक्रम का संचालन सोसायटी अध्यक्ष समीर मलिक ने किया। इस मौके पर सोसाइटी अध्यक्ष समीर मलिक, सचिव मूसा बंगाली, कोषाध्यक्ष शेख अब्दुल्ला, प्रवक्ता इस्माइल सहित कई रोजेदार मौजूद रहे।