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Ramzan :दुआ में उठे हाथ, अच्छी हो बरसात

locationकोटाPublished: Jun 02, 2018 03:21:02 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

रोजा हमारी ढाल है। यह शरीर व आत्मा को शुद्ध बनाता है। रोजा भलाई के कार्य करने की सीख देने वाला है।

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Ramzan :दुआ में उठे हाथ, अच्छी हो बरसात

कोटा . रमजान माह के तीसरे जुमे पर अकीदत का भाव देखते ही बना। लोग मस्जिदों में पहुंचे और नमाज अदा की। अमन-चैन व खुशहाली के दुआ के साथ अच्छी बरसात के लिए भी दुआएं की गई।
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टिपटा स्थित मस्जिद में नायब काजी जुबैर अहमद ने जुमे की नमाज अदा करवाई। इस मौके पर शहरकाजी अनवार अहमद ने रोजे की फजीलत बयान की। उन्होंने कहा कि रोजा हमारी ढाल है। यह शरीर व आत्मा को शुद्ध बनाता है। रोजा भलाई के कार्य करने की सीख देने वाला है।
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घंटाघर स्थित ऊपरवाली मस्जिद में मौलाना अनिसुर्रहमान हकीमी ने नमाज अदा करवाई। हनफिया कुतुबखाने में रोजा अफ्तार का आयोजन किया गया। बच्चों ने भी रोजे रखे। यहां अकीदतमंदों ने मिलकर रोजा खोला। हम्मालों की बड़ी मस्जिद में जलसे का आयोजन किया। बरेली शरीफ के मौलाना फाजिल मोहम्मद अमरुद्दीन ने तकरीर की।
रमजान के मायने अलग-अलग हो सकते हैं, इसे धर्म से जोडि़ए तो इबादत का रास्ता तय करता है, शारीरिक दृष्टि से जोड़ें तो यह शरीर को चुस्त-दुरुस्त करता है। यहां ऑप्टिकल जोन विज्ञान नगर के निदेशक ओप्टम अब्दुल हुसैन कुद्दुस अंसारी इसे इन सभी के साथ कुछ अलग नजरिए से देखते हैं।
अंसारी मानते हैं कि यह इंसान की इच्छा शक्ति , आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है। वह इसे इस तरह से स्पष्ट करते हैं कि हम रमजान के दिन छोड़ दें तो शेष दिनों में इतने घंटे खाए-पीए बिना नहीं रह सकते। सुबह-शाम समय पर रोटी चाहिए।
थोड़ी-थोड़ी देर में पानी, पर यहां देखिए इतनी गर्मी के बावजूद न पानी की चाह है, न भूख सता रही है, इसे क्या कहेंगे? कुद्दुस मानते हैं कि यह हमारी दृढ़ इच्छा शक्ति को दर्शाता है। इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता। मजबूत इच्छा शक्ति के कारण ही बच्चे भी रोजा रखते हैं।
इस मायने में देखें तो इंसान को ऊपरवाले ने असीमित शक्तियां दी हैं। इंसान इनका उपयोग सही दिशा में करने लगे तो दुनिया बदल डाले। धार्मिक दृष्टि से कुरआन व हदीस में रमजान का माह बहुत अहमियत रखता है। यह बरकत का माह है।
बुराइयों से दूर रखने वाला है। इसी माह अल्लाह ने कुरआन को नाजिल किया और रोजे फर्ज किए। रोजे का अर्थ सिर्फ भूखे-प्यासे रहना नहीं है, बल्कि यह भी इबादत का ही एक जरिया है।
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