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हाइवे 52 से करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित उमर गांव, जिसकी फौजियों का गांव के नाम से पहचान कायम हो गई। चाहे प्रथम, द्वितीय विश्व युद्ध हो या फिर करगिल की लड़ाई… बूंदी जिले के इस गांव के जांबाज पीछे नहीं हटे। कुछ तो मातृभूमि की रक्षा करते शहीद भी हुए। जिले में उमर एक ऐसा गांव होगा, जिसकी चौथी पीढ़ी फौज में पहुंच गई।
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जानकारों की मानें तो उमर गांव से अब तक करीब 500 से अधिक सैनिक सेना में रहकर दुश्मनों को जंग में हरा चुके। गांव के दो सैनिक वर्ष 1965 के युद्ध में रघुनाथ मीणा जम्मू क्षेत्र और वर्ष 2000 में वीर बहादुर जगदेवराज सिंह बिहार में शहीद हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गांव के करीब 25 सैनिकों ने अलग-अलग जगहों पर दुश्मनों से लोहा मनवाया। उमर से भारतीय सेना में 12 कैप्टन, 15 सूबेदार, 8 नायब सूबेदार सहित हवलदार और दर्जनों सिपाही देश की सीमा के प्रहरी रह चुके। उमर गांव में प्रत्येक घर से तीन से चार जने सेना में बताए।?फौज से रिटायर्ड होकर आए लोगों के सुनाए किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं।?इनकी सुनाई सच्चाई लोगों को सिर्फ फिल्मों में दिखती है।
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आंकड़े बयां करते जांबाजी की कहानीउमर के 14 सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया। द्वितीय विश्व युद्ध में 25 एवं वर्ष 1971 की लड़ाई में 20 सैनिकों ने भाग लिया। चार पीढिय़ां देश सेवा में
1. उमर के रूगा हवालदार ने प्रथम विश्वयुद्ध में जंग लड़ी। बाद में रूगा का बेटा श्रीलाल मीणा आजाद हिंद फौज में गार्ड कमांडर रहा। उसने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा। तीसरी पीढ़ी में कैप्टन देवीसिंह मीणा जिन्होंने 1971 के युद्ध में भाग लिया। चौथी पीढ़ी में देवीसिंह मीणा का पुत्र अर्जुन मीणा जो 14 साल से पाक बोर्डर पर हवलदार बनकर तैनात है।