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research : कैंसर : 95 % बदलती जीवन शैली के कारण, 5 % ही आनुवांशिक

locationकोटाPublished: Feb 16, 2020 06:49:54 pm

Submitted by:

Deepak Sharma

– कैंसर के बचाव व उपचार विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार- देशभर के आयुर्वेद चिकित्सक कोटा में जुटे

research : कैंसर : 95 % बदलती जीवन शैली के कारण, 5 % ही आनुवांशिक

कैंसर : 95 % बदलती जीवन शैली के कारण, 5 % ही आनुवांशिक

कोटा. आयुर्वेद डॉक्टर क्लब कोटा व विश्व आयुर्वेद परिषद के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को यूआईटी ऑडिटोरियम में कैंसर के बचाव व उपचार विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से आयुर्वेद डॉक्टर जुटे। चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान नई दिल्ली असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पूजा सब्बरवाल ने कहा कि कैंसर घातक बीमारी है। हृदयघात के बाद कैंसर दूसरी बड़ी बीमारी है। 95 प्रतिशत कैंसर बदलती जीवन शैली के कारण हो रहा है। 5 प्रतिशत ही आनुवांशिक है। इस कारण अपनी जीवन शैली में बदलाव लाना होगा। खानपान पर विशेष ध्यान देना होगा।
नेशनल इंस्ट्ीटयूट ऑफ आयुर्वेद की 15 साल पहले 2005-06 में शुरूआत की थी। हमने उसमें एक प्रोजक्ट शुरू किया था। कैंसर के मरीज को इसमें कीमोथैरेपी व रेडियाथैरेपी के साथ आयुर्वेद का ट्रीटमेंट और साथ में साइकॉलोजिकल, एंटी डिपरेशन ट्रिटमेंट भी दिया था। इसके परिणाम काफ ी बेहतर आए थे। इसके लिए हमने चार गु्रप बनाए थे। उसके अंदर अलग-अलग परीक्षण किए।
इन परीक्षणों के आधार पर देखा गया कि कैंसर की परम्परागत इलाज कीमोथैरेपी व रेडियाथैरेपी के साथ आयुर्वेद और साइकॉलोजिकल, एंटी डिप्रेशन का ट्रिटमेंट भी दिया जाए तो उसके परिणाम बहुत कारगर साबित होते है। कैंसर में योग और ध्यान का बहुत महत्व है। नियमित प्राणायाण और अनुलोम-विलोम का अभ्यास करने से कैंसर से बचाव होता है।
आने वाला समय आयुर्वेद का
राजस्थान आयुर्वेद यूनिवर्सिटी जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रो. बनवारी लाल गौड़ ने कहा कि आयुर्वेदों के सामने आज के युग में अन्त: स्रावी ग्रन्थियों के विकारों की चिकित्सा एक महत्वपूर्ण चुनौती है। आयुर्वेद संस्थान जयपुर के पूर्व निदेशक प्रो. महेश शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद में सभी चिकित्सा पद्धति है। आने वाला समय आयुर्वेद का है।
आयुर्वेद का उपचार काफी सस्ता
साध्वी विद्यानंद गिरी परमहंस ने कहा कि एलोपैथी दवा के कई साइड इफैक्ट है। कैंसर, एड्स जैसी अन्य गंभीर बीमारियों का उपचार आयुर्वेद में संभव है। आज के बच्चों को जंगलों में ले जाकर जड़ी-बूटियों की पहचान करानी चाहिए, ताकि आयुर्वेद औषधि की ज्यादा से ज्यादा पहचान हो सके। आयोजन सचिव डॉ. निरंजन गौतम ने बताया कि सेमिनार के मुख्य वक्ता डॉ. अखिलेश भार्गव, डॉ. गोपेश मंगल ने भी सम्बोधित किया।

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