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चली तो खूब पर अपेक्षाओं पर नहीं उतरी खरी

locationकोटाPublished: Aug 18, 2019 05:40:33 pm

Submitted by:

mukesh gour

यहां भी ‘ऑपरेशन गरिमाÓ की जरूरत

run well but not fulfill public expectation

run well but not fulfill public expectation

कोटा. रोजाना औसतन 36 हजार लोग बड़ी उम्मीदों के साथ बाहर से चमचमाती देख आकर्षण में ऑटो व अन्य साधन छोड़ इनमें सवार तो हो जाते हैं, लेकिन कुछ ही क्षणों में उन्हें निराशा होने लगती है। वजह भी कोई पहाड़ सी नहीं, छोटी-छोटी हैं। नगर निगम से जुड़े जनप्रतिनिधि आगामी चुनाव की तैयारियों में व्यस्त हैं और सिटी बस कंपनी को शायद फुर्सत नहीं। इस बीच शहरी यातायात में अपनी पैठ बना लेने वाली सिटी बसों में अब कैसे हैं हाल, इसे लेकर पत्रिका ने ‘रियलिटी चैकÓ किया तो कई गंभीर चीजें सामने आई। ऐसा लगा कि यहां भी ‘ऑपरेशन गरिमाÓ की जरूरत है।
स्टेशन से पत्रिका संवाददाता दोपहर 2.25 बजे खड़े गणेशजी जाने वाली बस में सवार हुआ। परिचालक ने महावीर नगर तक यात्रा समय 40 मिनट बताया। महज 5 से 7 मिनट में बस पूरी भर गई। यात्री भार करीब डेढ़ गुना। यह 2.35 बजे स्टेशन से रवाना हो गई। अभी परिचालक पूरे टिकट भी नहीं काट पाया था कि खेड़ली फाटक आ गया। चालक ने अचानक बस रोकी, व्यंग्य भी ताना, ‘पहले टिकट काट लें।Ó

नेहरू गार्डन, कलक्टे्रट होती हुई बस नयापुरा चौराहा आ पहुंची। यहां जाम के हालात के चलते 2 बजकर 50 मिनट हो गए। इस बीच अपवाद छोड़कर यात्रियों से परिचालक का संवाद रूखा ‘तूÓ कारे से ही रहा। नयापुरा में बस खड़ी रखने तक की समस्या सामने आई। चिल्ल-पौं के बीच हालांकि यह करीब 10 मिनट रुकी भी। यहां से परिचालक को ‘समयÓ की चिंता हुई। बस ने फर्राटा भरा, लेकिन 100 मीटर पर अगले चौराहे पर ही जाम में फंस गई। यहां बारां जाने वाले ग्रामीण को ध्यान आया कि नयापुरा उतरना था, परिचालक झल्ला उठा, बीच सड़क उतारा। खैर जूझते हुए बस 3.15 बजे कोटड़ी और 3.20 बजे फ्लाईओवर पार कर पेट्रोल पम्प पर आ खड़ी हुई। यहां अजीब हालात बने। करीब 10-12 यात्री, जिनमें संभ्रांत दिखने वाले युवा और महिलाएं भी शामिल थी, यहां उतार दी गई। वे कहते सुने गए कि अब इतना पैदल कैसे जाएंगे। कुछ फ्लाईओवर के उस पार उतरना चाहते थे, कुछ एरोड्राम। खैर, यहां से विज्ञान नगर, कॉमर्स कॉलेज होती हुई बस 3.35 बजे तलवंडी आ गई। कई सवारियां केशवपुरा की यहां उतार दी गई, जो नाराज दिखी। फ्लाईओवर निर्माण के चलते बस वहां जाती ही नहीं, लेकिन सवारियां बैठा लीं। इधर, यहां आते-आते बस की हालत वैसी हो गई, जैसे गंतव्य तक आती लम्बी दूरी की ट्रेन हो। बस करीब आधी भरी रह गई। परिचालक भी सुकून में दिखा। ठीक 3.40 बजे महावीर नगर तृतीय चौराहे पर यात्रा समाप्त की।
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पूरी यात्रा में स्पष्ट था कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की ये बसें पहली पसंद बन गई हैं, लेकिन गरिमामय सम्मानजनक संवाद इसमें चार चांद लगा सकता है। ठहराव और समय प्रबन्धन व्यवस्थित न होना अब भी बड़ी समस्या है।
ऐसी हैं हमारी सिटी बसें
24 बसें चल रही हैं इस वक्त शहर की सड़कों पर।
10 रूट प्रमुख हैं इनके।
5 से 6 चक्कर रोज करती है। दो शिफ्ट में औसतन एक बस।
300 सवारियां चढ़ती-उतरती हैं एक चक्कर में एक बस के।
36 हजार से ज्यादा यात्री रोज आते-जाते हैं इन 24 बसों में।
4700 किमी औसतन चलती हैं रोज सभी बसें।
यह भी जानें
18 मार्च 2017 को हुई शुरू, 42 सीट्स एक बस में, करीब सवा सौ चालक-परिचालकों का बेड़ा।

टपकने लगी छतें
महज साढ़े तीन साल में इन नई बसों की छतें टपकने लगी हैं। इससे यात्री परेशान दिखे।
इन इलाकों तक लगाती फेरे
स्टेशन से खड़े गणेशजी, एरोड्राम से भदाना, चंद्रेसल, मोदी फोर्टिस, दौलतगंज, पत्थरमंडी के लिए बसें विभिन्न रूट्स पर फेरे लगाती हैं।

कमजोरी
अकेली यात्रा कर रही वयोवृद्ध महिला ने 100 रुपए के खुल्ले मांगे तो परिचालक ने पहले तो नहीं दिए, फिर 10 और पांच के सिक्के दिखाए।
40 मिनट यात्रा का समय बताया, 1 घंटा 05 मिनट लगे।
अपेक्षाकृत पढ़े-लिखे तबके को आकर्षित नहीं कर पाई।
मजबूती
ऑटो व अन्य साधनों से अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित और किफायती। हर समय औसतन 5 से 7 सुशिक्षित युवा बुजुर्ग इसमें दिखे, थोड़े सुधार से आंकड़ा बढ़ाया जा सकता है।

दो बड़ी खामियां
चालक-परिचालकों को जनसंवाद का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया। अल्प वेतन और कंपनी के बजाय ठेका कार्मिक होने से परिचालकों में फ्रस्ट्रेशन-निराशा।
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