1.30 करोड़ खर्च, फिर भी टपक रही छतें
मंच संचालन कर रहे साहित्यकार रामनारायण हलधर ने ‘लहसुन से हम आस लगाए बैठे हैं, घर-घर में बारूद बिछाए बैठे हैं, कंगन, बिछिया, पायल ऋण में डूब गए, अब तो मंगलसूत्र बचाए बैठे हैं… रचना सुनाकर हाड़ौती के लहसुन किसानों की पीड़ा को बयां किया। वरिष्ठ गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ ने ‘वह कहवै छै असी छै राधा, ये कहवै छै वसी छै राधा, काती का तड़काव की चांदणी जसी छै राधा, सूरदास का पद सूं पूछो, जाणे कसी-कसी छै राधाÓ गीत सुनाकर माहौल को भक्तिमय किया।
मंच संचालन कर रहे साहित्यकार रामनारायण हलधर ने ‘लहसुन से हम आस लगाए बैठे हैं, घर-घर में बारूद बिछाए बैठे हैं, कंगन, बिछिया, पायल ऋण में डूब गए, अब तो मंगलसूत्र बचाए बैठे हैं… रचना सुनाकर हाड़ौती के लहसुन किसानों की पीड़ा को बयां किया। वरिष्ठ गीतकार दुर्गादान सिंह गौड़ ने ‘वह कहवै छै असी छै राधा, ये कहवै छै वसी छै राधा, काती का तड़काव की चांदणी जसी छै राधा, सूरदास का पद सूं पूछो, जाणे कसी-कसी छै राधाÓ गीत सुनाकर माहौल को भक्तिमय किया।
अस्पताल में दिखा अंधविश्वास का नजारा अरविंद सोरल ने ‘ये शहर अब बड़ा हो गया है’ कविता सुनाकर दाद पाई। मुकुट मणिराज ने मौसम आधारित काव्यपाठ किया, ओम नागर ने पिता पर मार्मिक कविता सुनाई। अम्बिकादत्त चतुर्वेदी, अतुल चतुर्वेदी आदि ने भी काव्यपाठ किया। संयोजक निशांत मिश्रा ने अतिथियों का स्वागत किया।