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BIG News: सावधान! कोटा में धूम रहा साइलेंट किलर, दबे पांव घर की दहलीज पर देता है दस्तक

जानलेवा साइलेंट किलर दबे पांव घरों में दस्तक दे रहा है। लोग इससे अनजान हैं। इस साइलेंट किलर के कदमों को हर घर में मजबूती दे रहा है।

कोटाMay 17, 2019 / 01:07 pm

​Zuber Khan

BIG News: सावधान! कोटा में धूम रहा साइलेंट किलर, दबे पांव घर की दहलीज पर देता है दस्तक

कोटा. जानलेवा साइलेंट किलर ( silent killer ) दबे पांव घरों में दस्तक दे रहा है। लोग इससे अनजान हैं। धूम्रपान, आनुवांशिकता और रोजमर्रा का तनाव इस साइलेंट किलर ( Silent killer ) के कदमों को हर घर में मजबूती दे रहा है। जी हां… डाक्टरों का यही मानना है। हाइपर टेंशन ( hypertension ) उच्च रक्तचाप हर घर में लोगों को अपना शिकार बना रहा है। इस गंभीर रोग के लक्षण नहीं होते। इसलिए इसका समय पर पता नहीं चल पाता। इसीलिए इसे चिकित्सा विज्ञान ( medical science ) में साइलेंट किलर ( Silent killer ) कहा जाता है। उच्च रक्तचाप कई जानलेवा बीमारियों का बड़ा कारण है।
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कई लोगों का कहना है कि उन्हें चक्कर आने अथवा सिर में भारीपन से पता चलता है कि उनका रक्तचाप बढ़ रहा है, लेकिन डॉक्टर इन बातों को कल्पना मानते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि बड़ी संख्या में रोगियों को उच्च रक्तचाप का पता तब चलता है। जब उनकी जान पर बन आती है। डॉक्टरों का मानना है कि उच्च रक्तचाप के आधे रोगी पर्याïप्त उपचार तक नहीं कराते।

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ऐसा हो रक्तचाप

किसी भी व्यक्ति का रक्तचाप 140-90 से कम होना चाहिए। इससे अधिक रक्तचाप उच्च रक्तचाप माना जाता है। मधुमेह व गुर्दे के रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के लिए 130-80 रक्तचाप होना चाहिए। इन रोगियों में रिस्क अधिक रहती है। इसलिए सामान्य व्यक्ति से इनका रक्तचाप कम रखा जाता है। सामान्यत: 120 से 139 व 80 से 89 तक रक्तचाप सामान्य माना जाता है। 139-89 की स्थित में रोगी को बॉर्डर लाइन पर माना जाता है, लेकिन 160-100 तक रक्तचाप पहुंचना बेहद खतरनाक होता है।

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इतना तो कर लें खुद के लिए
उच्च रक्तचाप के रोगी को उपचार के लिए दवा तो लेनी ही होती है। रोगी अपनी जीवनशैली में बदलाव करके भी इस पर नियंत्रण पा सकता है। फिजिशियन डॉ. मनोज सलूजा के अनुसार उच्च रक्तचाप होने पर रोगी नमक का सेवन कम करे। रोजाना पैदल घूमे। संतुलित भोजन करे। नियमित दवा ले। योग और हल्का व्यायाम करे। उम्र बढऩे के साथ ही धमनियां कठोर होने लगती हैं। इससे रक्तचाप बढऩे लगता है। इसलिए 35 वर्ष की आयु के बाद रक्तचाप की नियमित जांच करानी चाहिए। इस उम्र में रक्तचाप बढ़ सकता है। इसे दवाओं से ही नियंत्रित किया जा सकता है। कम उम्र में कुछ अस्थाई कारणों व बीमारियों से रक्तचाप बढ़ जाता है। इसे उपचार कर नियंत्रित किया जा सकता है।
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खुद की भी चिंता नहीं करते रोगी

करीब पच्चीस फीसदी रोगियों में दिल के दौरे के प्रमुख कारणों में हाइपर टेंशन शामिल होता है। इनमें से अधिकांश को तब पता चलता है, जब उन्हें दिल का दौरा पड़ चुका होता है। दुखद बात यह है कि जो मैंने अपने अनुभव में देखी है। उच्च रक्तचाप के आधे से अधिक रोगी दवा नहीं लेते हैं। वे कुछ दिन दवा लेने के बाद बंद कर देते हैं। करीब पन्द्रह से बीस फीसदी ही नियमित दवा लेकर जांच कराते हैं, यह गंभीर बात है। इस वजह से ही बड़ी संख्या ऐसे रोगियों की भी होती है, जिनका रक्तचाप दवा से भी नियंत्रित नहीं हो पाता है।
– डॉ. राकेश जिंदल, हृदय रोग विशेषज्ञ
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यह है खतरा

सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा उच्च रक्तचाप के रोगियों को करीब छह गुना तक दिल के दौरे का खतरा रहता है। हार्ट अटैक का यह बड़ा रिस्क फैक्टर माना जाता है। इसके लिए पहले जीवन शैली में परिवर्तन किया जाना चाहिए, तनाव और नमक से खुद को दूर रखें। उसके बाद भी नियंत्रण नहीं हो तो दवाएं हैं।
– डॉ. पलकेश अग्रवाल, कार्डियक सर्जन
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35 के बाद हर साल जांच कराएं

उच्च रक्तचाप लकवे का व ब्रेन हेमरेज का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है। लकवा होकर अस्पताल पहुंचने वाले 90 फीसदी से अधिक लोगों में उच्च रक्तचाप भी एक कारण होता है। यह गुर्दे खराब होने का भी बड़ा कारण है। कई रोगी जब अस्पताल पहुंचते हैं तो उनका उच्च रक्तचाप 250 तक होता है। अनेक लोग तो पचास साल की उम्र तक एक बार भी रक्तचाप की जांच नहीं कराते, जबकि 35 के बाद हर साल एक बार जांच करानी ही चाहिए। रक्तचाप को नियंत्रित कर अनेक जानलेवा बीमारियों से बचा जा सकता है।
– डॉ. विजय सरदाना, न्यूरोलॉजिस्ट, एमबीएस अस्पताल

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