स्थायी लोक अदालत में जनहित याचिका पेश की एडवोकेट वीरेद्र कुमार सक्सेना, राजेन्द्र मालवीय, हितेष जैन, केसरीलाल बैरवा व संजय पाटौदी ने जिला कलक्टर, बिजली कम्पनी सीईएससी के सीओ और
कोटा विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के खिलाफ स्थायी लोक अदालत में जनहित याचिका पेश की। इसमें कहा कि शहर में उपभोक्ताओं के घरों पर कई वर्षों से इलेक्ट्रोनिक मीटर लगे हुए हैं। इनकी रीडिंग के आधार पर ही बिजली बिलों का भुगतान किया जा रहा है। उन मीटरों में किसी तरह की कोई खराबी नहीं होने के बावजूद बिजली कम्पनी अनावश्यक रूप से बिना किसी उचित कारण के उन मीटरों को बदलकर स्मार्ट मीटर लगा रही है, जबकि स्मार्ट मीटर इलेक्ट्रोनिक मीटरों की तुलना में तेज घूमते हैं। इस कारण उपभोक्ताओं को अधिक विद्युत भार वहन करना पड़ रहा है। इससे उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। याचिका में कहा कि अधिकारियों को आदेशित किया जाए कि शहर में पूर्व में लगे इलेक्ट्रोनिक मीटरों को बदलकर स्मार्ट मीटर नहीं लगाएं। साथ ही, पुराने मीटरों में किसी तरह का परिवर्तन व छेड़छाड़ नहीं की जाए।
जनहित याचिका पर सुनाया फैसला, की तल्ख टिप्पणी स्थायी लोक अदालत ने बुधवार को एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की। टिप्पणी में कहा कि शिक्षित व्यक्ति की शिकायत पर यदि कार्यवाही नहीं की जाती तो आम नागरिक जो अशिक्षित व गरीब होता है, उसकी सुनवाई संबंधित विभाग में होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अदालत ने यह टिप्पणी न्यू जवाहर नगर निवासी एडवोकेट योगेश गुप्ता की ओर से पेश जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए की। गुप्ता ने
जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड नयापुरा के अधिशाषी अभियंता, इटावा के अधीक्षण अभियंता व सहायक अभियंता के खिलाफ याचिका पेश की थी। इसमें कहा था कि उन्होंने खातौली स्थित अपने मकान पर बिजली कनेक्शन ले रखा था, लेकिन कोटा रहने के कारण उन्होंने गांव के मकान के बिल की बकाया राशि जमा करवाकर 17 नवम्बर 2016 को कनेक्शन कटवा लिया। इसके बाद भी दिसम्बर का 6800 रुपए का बिल जारी कर दिया गया।
5 हजार रुपए मानसिक संताप भी दिलाया इस संबंध में वे इटावा स्थित विभाग के कार्यालय गए तो वहां उनसे दोबारा बिल नहीं आने की बात कही। इसके बाद भी फरवरी, अप्रेल व जून 2017 का बिल जारी कर दिया गया। इसे ठीक करवाने में परिवादी को बार-बार विभाग के चक्कर लगाने से परेशानी व मानसिक संताप हुआ। याचिका में कहा कि सभी बिलों की राशि निरस्त करवाने के अलावा उन्हें 5 हजार रुपए मानसिक संताप भी दिलाया जाए। इस पर अदालत की ओर से जारी नोटिस के जवाब में बिजली विभाग ने कहा कि कनेक्शन कटने के बाद भी परिवादी ने खम्बे से सीधे आंकड़े डालकर अवैध कनेक्शन ले रखा है, जिससे उनके उपयोग के बिल भेजे जा रहे हैं। स्थायी लोक अदालत के अध्यक्ष कैलाशचंद मीना, सदस्य अजय पारीक व डॉ.अरुण शर्मा ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश में कहा कि एक जागरूक व्यक्ति जो व्यवसाय से अभिभाषक है। उसके द्वारा बिजली विभाग के संबंधित अधिकािरयों के यहां जाकर निवेदन करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं की गई और कनेक्शन कटने के बाद भी बार-बार बिजली बिल भेजे जा रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि विभाग के अधिकारी अपने दायित्वों के प्रति कितने जिम्मेदार हैं।