सैफ बताते हैं कि आमतौर पर इस तरह के सर्प क्षेत्र में नजर नहीं आते। करीब डेढ़ दशक के पहले सर्पों विशेषज्ञ व स्नैक केचर विष्णु शृंगी ने इस प्रजाति के सर्प को आबादी क्षेत्र से रेस्क्यू किया था। सर्प का नजर आना दिखाता है कि क्षेत्र की वादियां सर्पों के अनुकूल है। सैफ के अनुसार प्रकृति के सभी जीव पपर्यावरण संतुलन की दृष्टि से महत्व के है।
रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ा सैफ ने इस सर्प को देखा तो इसकी सूचना सर्प के विशेषज्ञ विष्णु शृंगी को दी। सर्प रेस्क्यूअर राकेश सेन ने इसे रस्क्यू कर जंगल में छोड़ा। यह करीब डेढ़ से दो माह का व करीब एक फुट लंबा था। इसका नजर आना इसकी यहां पर मौजूदगी को दर्शाती है।
ऐसा होता है सर्प सर्प विशेषज्ञ शृंगी बताते हैं कि इस प्रजाति के सर्प पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में नजर आते हैं। पेड़ की टहनियों व झाडिय़ों में रहना इन्हें रास आता है। यह विषहीन होते हैं। जवाहर सागर क्षेत्र में इनकी उपस्थिति है। यह बहुत दुबला-पतला व चिकने शल्क वाला होता है। इनके शरीर पर भूरे या कांस्य रंग की धारियां होती है। इसकी औसत एक मीटर व अधिकतम डेढ़ मीटर लंबा होता है। इनका सिर चपटा व आंखे बड़ी होती है। पेट के शल्कों के बाहरी किनारे दांतेदार होते हैं, जो शरीर के दोनों तरफ सलवटों जैसे नजर आते हैं। ये सर्प को उपर चढऩे में मदद करता है।
इतना चतुर इस प्रजाति के सर्प हमेशा सतर्क रहते हैं।खतरा होने पर यह आक्रामक हो जाता है। अपने शरीर को फुला लेते हंै। शिकार पर बड़ी फुर्ती से वार करते है। सर्पों की अन्य प्रजातियों की तुलना में इसे ऊंचाई से कूदने में इन्हें डर नहीं लगता।खुले में रहना पसंद है। मेंढक व छिपकली पसंदीदा भोजन है। चलते समय यह अपने अगले भाग को इस तरह से लहराते हुए चलते हैं जैसे नृत्य कर रहे हों। इनको छेडऩे पर भी यह यह ऐसा ही रूप दिखाते हैं।