ऐसे माहौल में भी काफिले में शामिल जवान जब अपने वाहनों से नीचे उतरे तो चेहरे पर कोई डर या तनाव नहीं था। उन्होंने तत्काल मोर्चा संभाल लिया। काफिले में शामिल सीआरपीएफ के जवानों का कहना है कि अगर गोलियां चला रहे आतंककारी सामने होते तो उनका क्या हश्र होता, ईश्वर ही जाने। काफिले में शामिल ऐसे ही एक जवान नरेन्द्र सिंह ने पत्रिका से बातचीत में बताया कि वे 2015 से कश्मीर में तैनात हैं।
जब हादसा हुआ तब सीआरपीएफ की 78 बसों में जवान जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे। मैं दसवें नम्बर की बस में सवार था, लेकिन जब विस्फोट हुआ तो कान फाड़ देने वाली आवाज सुनाई दी। आवाज सुन कर लगा कि कुछ अनहोनी हो गई है। जिस जगह धमाका हुआ, वहां हमें नहीं जाने दिया।