मधुमेह के रोगी को सबसे अधिक खतरा रहता है, हृदय रोग का। एमबीएस अस्पताल के मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा के अनुसार, मधुमेह रोगियों में विटामिन डी का उपयोग रक्त नलिकाओं में थक्का जमने की आशं़का को कम करता है। विटामिन डी धमनियों में कोलेस्ट्रोल को जमने से रोकता है, धमनियों में रुकावट से ही हृदयाघात और पक्षाघात होता है। विटामिन डी धूप, अंडा, दूध और मछली में मिलता है। खाने में नारियल का तेल मोटापा और मधुमेह को कम करता है। नारियल तेल का मीडियम चेन फैटीएसिड शरीर में वसा को कम करता है। मधुमेह रोगियों के लिए मिर्च भी गुणकारी है। मिर्च में मौजूद एल्केनाइड रक्त में इंसुलिन की अधिकता को नियंत्रित करता है। धमनियों में वसा को जमने से रोकता है। देश में करीब चार करोड़ लोग मधुमेह की दहलीज पर खड़े हैं। ऐसे रोगियों के लिए ब्लैक टी पीने से मधुमेह होने की आशंका घटती है।
हर साल कटते है 50-60 हजार पैर
हर साल कटते है 50-60 हजार पैर
मधुमेह की वजह से हर साल देश में 50 से 60 हजार लोगों के पैर काटने पड़ते हैं। डॉ. सलूजा के अनुसार मधुमेह रोगी वर्ष में एक बार अपने पैरों की जांच कराए। पैरों को चोट से बचाए और पैरों में संवेदनशीलता कम होने पर तत्काल डाक्टर को दिखाए। समय रहते ऐहतियात बरतने से पैरों की रक्षा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मधुमेह के कारण पैर काटने के बाद देखा गया है कि रोगी की छह से आठ वर्ष में ही मृत्यु हो जाती है। मधुमेह रोगी हमेशा जूते पहने, रोजाना अपने पैर धोएं, नाखून संभल कर काटे।
25 से 75 तक किसी भी उम्र में हो रही मधुमेह
मधुमेह किसी भी उम्र में हो रहा है। अस्पताल में 25 साल से 75 साल तक के रोगी आ रहे हैं। मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी शारदा के अनुसार, बीस साल पहले चालीस से पचास साल की ïउम्र में टाइप टू मधुमेह के रोगी पहली बार सामने आते थे। अब 25 से 30 साल में ही आ रहे हैं। इसमें पता ही नहीं चलता है कि इतनी कम उम्र में रोगी टाइप वन है अथवा टाइप टू। वहीं ऐसे रोगी भी आ रहे हैं, जो 50-60 साल तक स्वस्थ रहे और सत्तर- पिचहत्तर साल की उम्र में मधुमेह हो रहा है। डॉ. शारदा के अनुसार अब दवाएं काफी बेहतर आ गई हैं। जिसमें ब्लड शुगर लेवल कम होने का खतरा नहीं रहता है। उन्होंने बताया कि नई दवाएं शुगर पर नियंत्रण करती है। ये अग्नाशय को दुबारा सक्रिय कर सकती है। इन दवाओं का ट्रायल काफी समय से चल रहा है। इनके आने से भी लाभ होगा।
मधुमेह किसी भी उम्र में हो रहा है। अस्पताल में 25 साल से 75 साल तक के रोगी आ रहे हैं। मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी शारदा के अनुसार, बीस साल पहले चालीस से पचास साल की ïउम्र में टाइप टू मधुमेह के रोगी पहली बार सामने आते थे। अब 25 से 30 साल में ही आ रहे हैं। इसमें पता ही नहीं चलता है कि इतनी कम उम्र में रोगी टाइप वन है अथवा टाइप टू। वहीं ऐसे रोगी भी आ रहे हैं, जो 50-60 साल तक स्वस्थ रहे और सत्तर- पिचहत्तर साल की उम्र में मधुमेह हो रहा है। डॉ. शारदा के अनुसार अब दवाएं काफी बेहतर आ गई हैं। जिसमें ब्लड शुगर लेवल कम होने का खतरा नहीं रहता है। उन्होंने बताया कि नई दवाएं शुगर पर नियंत्रण करती है। ये अग्नाशय को दुबारा सक्रिय कर सकती है। इन दवाओं का ट्रायल काफी समय से चल रहा है। इनके आने से भी लाभ होगा।
डायबिटीज है तो आंखों का भी रखें विशेष ध्यान कोटा. मनुष्य के शरीर में जरूरत के अनुसार इंसुलिन हार्मोन नहीं बनता है। इंसुलिन तो बनता है, लेकिन अपना काम ठीक से नहीं कर पाता, ऐसे व्यक्ति डायबिटीज से पीडि़त होते हंै। अधिक समय तक डायबीटीज रहने से यह कई अंगों को प्रभावित करती है और प्रभावित अंग आखें भी हो सकती हैं।
डी.डी. नेत्र संस्थान के संस्थापक डॉ. डी.डी. वर्मा ने बताया कि दुनिया भर में 8.5 प्रतिशत लोग डायबिटीज से पीडि़त हंै और करीब 15.20 लाख लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष हो जाती है। डायबिटीज की वजह से आंखों पर भी प्रभाव पड़ता है। डायबिटीज रक्त वाहिकाओं की दीवार को प्रभावित करता है, जिसे रेटिना (जिस पर छवि बनती है) तक ऑक्सीजन ले जाने वाले नसें कमजोर हो जाती हैं। डायबिटीज के मरीजों में अगर शुगर की मात्रा नियंत्रित नहीं रहती तो वह डायबिटिज रेटीनोंपैथी के शिकार हो सकते हैं। आंखों की रोशनी तक कम होती जाती है। इससे पीडि़त व्यक्तियों में रेटीनोपैथी, ग्लूकोमा, मोतियाबिन्द, आंख की मांस पेशियों में लकवा होने से आंखों के भैंगापन व दो-2 दिखने की समस्या भी हो सकती है। वल्र्ड में 26.30 प्रतिशत डायबिटीज मरीजों को डायबेटिक रेटीनोपैथी की समस्या होती है। डायबिटीज के मरीजों को वर्ष में एक बार नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए व अपनी डायबिटीज को समूचित नियंत्रित करना चाहिए।