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मथुराधीश जी की प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के वल्लभमय सप्त स्वरूपों में से प्रथमेश है

locationकोटाPublished: Sep 02, 2018 09:23:32 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

शिक्षा नगरी कोटा सिर्फ शिक्षा का ही कोटा नहीं, धर्मप्रेमियों के लिए धर्म नगरी भी है।
 

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मथुराधीश जी की प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के वल्लभमय सप्त स्वरूपों में से प्रथमेश है

कोटा. शिक्षा नगरी कोटा सिर्फ शिक्षा का ही कोटा नहीं, धर्मप्रेमियों के लिए धर्म नगरी भी है। आए दिन भगवत कीर्तन सत्संग भजन के दौर तो चलते ही हैं, तो हर मत को मानने वाले अनुनायिों के लिए यहां खास धार्मिक स्थल हैं, जहां दर्शन मात्र से असीम शांति का अनुभव होता है। बात कृष्ण जन्मोत्सव की है तो जरा बता दें। कोटा में पाटनपोल क्षेत्र में प्रथमेश मथुराधीश बिराजते हैं,जो कोटा में छोटी काशी बूंदी से यहां आए।
वल्लभकुल सम्प्रदाय की प्रथम पीठ
महाराव दुर्जनसाल हाड़ा बूंदी से लेकर आए। मथुराधीश जी की प्रतिमा भगवान श्रीकृष्ण के वल्लभमय सप्त स्वरूपों में से प्रथमेश है। इसी कारण कोटा के इस मथुराधीश मंदिर को वल्लभसम्प्रदाय की प्रथम पीठ मानी जाती है और और वल्लभकुल सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण व प्रथम तीर्थ है।
प्रथमेश ऐसे आए कोटा
इतिहासविद फिरोज अहमद के अनुसार मथुराधीश जी का प्राकट्य गोकुल के पास कर्णावल गांव में माना जाता है। मथुराधीश जी के इस विग्रह को वल्लभाचार्य ने अपने शिष्य पदमनाथ के पुत्र को दे दिया। उन्होंने यह अपने बड़े पुत्र गिरधर को सौंप दी, जो इसे पूजते रहे। 1669 में इस प्रतिमा को बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों को बचाने के लिए बूंदी लाया गया। बूंदी के तत्कालिक शासक राव राजा भाव सिंह इसे बूंदी लेकर आए। बाद में कोटा राज्य के शासक महाराव दुर्जनशाल1744 ईस्वी में मथुराधीशजी को कोटा ले आए। प्रतिमा को कोटा केदीवान राय द्वारका दास की हवेली में पदराया गया। वल्लभकुलसम्प्रदाय के मतानुसार सेवा होती है।
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