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वो 36 घंटे….जब थरथराने लगा बैराज का कंट्रोल रूम

locationकोटाPublished: Sep 19, 2019 01:36:27 am

Submitted by:

Deepak Sharma

गेस्ट राइटर: एजाजुद्दीन अंसारी, अधीक्षण अभियंता भूखे-प्यासे 36 घंटे तक दिल थामकर बैठे रहे। गांधीसागर बांध में पानी की लगातार आवक हो रही थी। जब अचानक 16 लाख क्यूसेक पानी आने की सूचना मिली तो हाथ-पैर फूल गए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।

That 36 hours, when shaking control room of kota barrage

That 36 hours, when shaking control room of kota barrage

कोटा. भूखे-प्यासे 36 घंटे तक दिल थामकर बैठा रहा.., गांधीसागर बांध में पानी की लगातार आवक हो रही थी। जब अचानक 16 लाख क्यूसेक पानी आने की सूचना मिली तो हाथ-पैर फूल गए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इसे एक चुनौती व लक्ष्य के रूप में लिया और पूरी टीम के साथ मुस्तैदी से जुट गए।
12 सितम्बर को गांधीसागर का जलस्तर 1311.32 फीट था। उसके बाद अचानक पानी बढ़ा। दूसरे दिन यानी 13 सितम्बर को आवक कम हुई, लेकिन शाम को अचानक पानी की आवक 8.5 लाख से बढ़कर 14 लाख क्यूसेक हो गई। यह देख एकबारगी तो समझ नहीं आया कि अब क्या किया जाए। जिला कलक्टर व पुलिस अधीक्षक को इसकी सूचना दी।
वे कोटा बैराज पर पहुंचे और मेरा व टीम का हौसला बढ़ाया। इसके बाद सबसे ज्यादा चिंताजनक पल वह आया जब तेज बारिश और पानी की आवक के बीच बांधों के कंट्र्रोल रूम का आपस में संपर्क नहीं हो पा रहा था। तब मैंने टीम को मुस्तैद किया। गेज के हिसाब से पानी छोडऩे का फैसला किया।
उसके बाद टीम गेज के हिसाब से पानी छोड़ती गई। पानी का डिस्चार्ज लेवल 854 से ऊपर नहीं जाने दिया। जिला कलक्टर को कहा कि यदि गांधीसागर से यदि बड़ी मात्रा में पानी आता है तो भी उसे बैराज तक पहुंचने में 36 घंटे लगते हैं। मैं इस दौरान पूरे 36 घंटे अधिशासी अभियंता आरके जैमिनी, जितेन्द्र शेखर समेत अन्य अधिकारी और कर्मचारी दिल थामकर बैठे रहे।
Kota Barrage gates opened
IMAGE CREDIT: patrika
मुझे 14 सितम्बर को 7 लाख क्यूसेक पानी छोड़े जाने की सूचना मिली तो प्रशासन को कह कर निचली बस्तियों को तुरंत खाली करवाने को कहा। इसके बाद बस्तियों को खाली करवाया गया। इसलिए जब पानी छोड़ा तो जनहानि नहीं हुई। अगर गांधीसागर बांध में किसी प्रकार की दुर्घटना हो जाती तो रावतभाटा, कोटा व धौलपुर से आगे तक गांव-शहर सब डूब जाते और यह अकल्पनीय त्रासदी साबित होती।
रावतभाटा में परमाणु बिजलीघर होने के चलते रेडिएशन का भी खतरा था। 16 सितम्बर को पानी की आवक कम हुई तो जो अहसास हुआ, उसे शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। 14 सितम्बर को जवाहरसागर बांध पर तैनातजेईएन लोकेश कुमार को पथरी के कारण पेट में दर्द होने लगा। उस समय बांधों में पानी की आवक लगातार जारी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
उसके बाद भी वह कंट्रोल रूम पर डटे रहे। जब जवाहरसागर बांध से पानी का फ्लो बढ़ा तो कोटा बैराज का एक नम्बर हाई रिस्क गेट खोला गया। यह वो पल था जब कोटा बैराज का कंट्रोल रूम थरथराने लगा, क्योंकि यह मिट्टी के टीले पर बना है। यहां से पानी का कटाव होता है। इस गेट को हाई रिस्क पर ही खोला जाता है। अन्यथा कंट्रोल रूम को खतरा हो सकता था। कोटा बैराज के अधिशासी अभियंता देवेन्द्र अग्निहोत्री पूरी रात कंट्रोल रूम के बाहर ही मुस्तैदी से डटे रहे।

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