scriptजिस पीर का जलाल देख मुगल शासक चौंक गए थे, उसी की विरासत आज खंडहर बन गई है | The 12th century temple became dilapidated in ruins at kota district | Patrika News
कोटा

जिस पीर का जलाल देख मुगल शासक चौंक गए थे, उसी की विरासत आज खंडहर बन गई है

कोटा जिले के आवां कस्बे में नाथ सम्प्रदाय ने करवाया था निर्माण, खंडहर में तब्दील हो गया 12वीं शताब्दी का मंदिर

कोटाAug 21, 2019 / 06:41 pm

Deepak Sharma

The 12th century temple became dilapidated in ruins at kota district

The 12th century temple became dilapidated in ruins at kota district

कोटा. जिले के आवां कस्बे की मुख्य सड़क मार्ग स्थित 12वीं शताब्दी में निर्मित नाथ सम्प्रदाय के मंदिर को बारिश ने जमींदोज कर दिया। अब इसका अस्तित्व मिटने के कगार है।
नंदकिशोर योगी बताते है कि उनके वंशज गोरखनाथ सम्प्रदाय के पीर आशानाथ ने विक्रम संवत 999 में गाय को शेर बनाकर बादशाह जलालुद्दीन को परचा दिया था। तभी बादशाह ने खुश होकर आसण (आश्रम) बनवाने के लिए उन्हें सवा पांच बीघा भूमि उपहार में दी थी।
read more : कोटा के अस्पतालों में मौत के बाद शव की होती है ऐसी दुर्गति कि देखने वालों की कांप उठे रुह

जिस पर संवत 1132 में आशानाथ ने नाथ आश्रम की स्थापना कर धूणी लगाई। उनके शिष्य थारनाथ ने श्रमदान कर वहां ईंट, पत्थर व चुने से मंदिर का निर्माण करवाया। जिस पर भूरे बलूए पत्थर पर शिल्पकारी की श्रीगणेश, शिवलिंग व माताजी की मूर्तियों की नक्काशी उकेरी गई।
read more : एटीएम कार्ड का क्लोन बनाकर किसान के खाते से उड़ाए 2 लाख 27 हजार, बैंक में मचा हड़कम्प

सबसे आकर्षक भाग उसका प्रवेश द्वार था। जिसके ललाट शिखर पर भगवान गणेश की मूर्ति उकेरी हुई थी। मंदिर के सामने एक बड़ा धूणा व दो समाधि एक शिलालेख थे। काशी गोरखनाथ समुदाय के काशीनाथ ने इसमें भैरूजी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी।
कालांतर में यह समाधि स्थल प्रकृति की मार झेलते हुए अपनी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। देखरेख के अभाव में यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होकर अवशेष के रूप में एक ढांचा रह गया है। यहां के बाशिन्दे इसे मठ के नाम से ही पुकारते हैं। गत दिनों हुई बारिश के दौरान यह प्राचीन मंदिर पूरी तरह धराशायी हो गया। करीब 745 वर्षों से यहां सुबह शाम आरती, सत्संग व पूजा पाठ होते थे।
दो जीवंत समाधिया
विक्रम संवत 1232 में श्रावणी सुदी पूर्णिमा को आशानाथ जीवंत समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए थे। इसके बाद उनके शिष्य थरनाथ ने संवत 1331 में भी जीवंत समाधि ली थी।

सरकारी राहत की दरकार
नाथ सम्प्रदाय के लोगों का कहना है कि अगर राज्य सरकार से मंदिर जीर्णोंद्धार के लिए आर्थिक मदद मिल जाए तो पुरखों की निशानी को फिर से साकार किया जा सकता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो