read more : कोटा के अस्पतालों में मौत के बाद शव की होती है ऐसी दुर्गति कि देखने वालों की कांप उठे रुह जिस पर संवत 1132 में आशानाथ ने नाथ आश्रम की स्थापना कर धूणी लगाई। उनके शिष्य थारनाथ ने श्रमदान कर वहां ईंट, पत्थर व चुने से मंदिर का निर्माण करवाया। जिस पर भूरे बलूए पत्थर पर शिल्पकारी की श्रीगणेश, शिवलिंग व माताजी की मूर्तियों की नक्काशी उकेरी गई।
read more : एटीएम कार्ड का क्लोन बनाकर किसान के खाते से उड़ाए 2 लाख 27 हजार, बैंक में मचा हड़कम्प सबसे आकर्षक भाग उसका प्रवेश द्वार था। जिसके ललाट शिखर पर भगवान गणेश की मूर्ति उकेरी हुई थी। मंदिर के सामने एक बड़ा धूणा व दो समाधि एक शिलालेख थे। काशी गोरखनाथ समुदाय के काशीनाथ ने इसमें भैरूजी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी।
कालांतर में यह समाधि स्थल प्रकृति की मार झेलते हुए अपनी उपेक्षा का दंश झेल रहा है। देखरेख के अभाव में यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होकर अवशेष के रूप में एक ढांचा रह गया है। यहां के बाशिन्दे इसे मठ के नाम से ही पुकारते हैं। गत दिनों हुई बारिश के दौरान यह प्राचीन मंदिर पूरी तरह धराशायी हो गया। करीब 745 वर्षों से यहां सुबह शाम आरती, सत्संग व पूजा पाठ होते थे।
दो जीवंत समाधिया
विक्रम संवत 1232 में श्रावणी सुदी पूर्णिमा को आशानाथ जीवंत समाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गए थे। इसके बाद उनके शिष्य थरनाथ ने संवत 1331 में भी जीवंत समाधि ली थी। सरकारी राहत की दरकार
नाथ सम्प्रदाय के लोगों का कहना है कि अगर राज्य सरकार से मंदिर जीर्णोंद्धार के लिए आर्थिक मदद मिल जाए तो पुरखों की निशानी को फिर से साकार किया जा सकता है।