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राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग : टॉप 50 का किया था दावा ,100 में भी जगह नहीं बना पाया कोटा

locationकोटाPublished: Jun 25, 2018 10:35:12 am

Submitted by:

Deepak Sharma

ठेकेदारों की लापरवाही से पिछड़ा निगम, खींचतान के कारण नहीं हो पाए कचरा परिवहन के नए टेण्डर |

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कोटा. नगर निगम में सफाई व्यवस्था के ठेकों को लेकर पार्षद, महापौर और अधिकारियों में चार साल से चल रही खींंचतान के कारण ही शहर राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिंग में टॉप 100 शहरों में स्थान नहीं बना सका।
निगम में सफाई की मलाई का खेल ऐसा चल रहा है कि चार साल में भी सफाई व कचरा परिवहन के ठेके नहीं हो पाए। निगम प्रशासन ने सफाई का पैटर्न बदलते हुए नए ठेके करवाने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन चेहते ठेकेदारों के लिए पार्षद लॉबिंग शुरू कर देते हैं। इस कारण सफाई व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाता।

केन्द्रीय शहरी मंत्रालय की टीम ने तीन चरणों में किए स्वच्छता सर्वेक्षण में माना था कि शहर में कचरा प्वॉइंट से लेकर ट्रेंचिंग ग्राउण्ड तक कचरा सही तरीके से नहीं पहुंचता और न उठाव होता है।
टीम ने पाया था कि शाम 4 बजे बाद भी कचरा प्वॉइंट कचरे से अटे हुए थे, जबकि निगम ने नए कचरा प्वॉइंट लगाने, चारदीवारी करने आदि पर करीब 2.50 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, लेकिन कचरे का सुचारू उठाव नहीं हो पाया।
सफाई से लेकर उठाव तक का देना था ठेका
शहर की सफाई व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव के लिए आयुक्त डॉ. विक्रम जिंदल ने कचरे को ट्रेंचिंग ग्राउण्ड तक पहुंचाने की कार्ययोजना तैयार की थी। शहर को जोन में बांटकर वार्डों में सफाई से लेकर कचरा प्वॉइंट पर कचरा उठाने का टेण्डर एक ही फर्म को देने के टेण्डर जारी किए थे।
दो पारी में कचरा उठाना अनिवार्य किया। कचरा प्वॉइंट पर पहली बार कचरा फैला हुआ नजर आने पर भारी पेनल्टी तथा दूसरी बार नोटिस देने तथा तीसर बार संबंधित फर्म को ब्लैकलिस्ट करने का प्रावधान किया।
इसके टेण्डर भी हो गए थे, लेकिन कुछ पार्षदों ने लॉबिंग शुरू कर दी। ऐनवक्त पर महापौर ने यू नोट जारी कर टेण्डर निरस्त करवा दिए। आयुक्त ने स्वीकार किया कि टेण्डर को निरस्त करना गलती थी।

गीले-सूखे कचरे के डस्टबिन बनाए
स्वच्छता सर्वेक्षण से पहले निगम ने आनन-फानन में शहर में डोर टू-डोर कचरा संग्रहण व्यवस्था लागू कर दी। इसके लिए गीला और सूखा कचरा डालने के लिए एक ही डस्टबिन में अलग-अलग कम्पाउण्ड बनाए गए।
लोग गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग डालते थे, लेकिन निगम कचरे का वर्गीकरण नहीं करता था। केन्द्रीय टीम ने टिपरों की आकस्मिक जांच में इसका खुलासा किया। इस श्रेणी में भी निगम के नम्बर कट गए।
केन्द्रीय टीम ने नांता स्थित ट्रेंचिंग ग्राउण्ड का दौरा किया था तो यहां भी कचरे का पहाड़ नजर आया। इस श्रेणी में भी जीरों नम्बर मिला है, जबकि तीन साल से कचरे से बिजली बनाने की प्रक्रिया कागजों में दौड़ रही है।

यह प्रचारित किया था निगम ने
निगम ने स्वच्छता सर्वेक्षण के दो माह पहले तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत विज्ञापन जारी कर शहर को प्रथम 100 शहरों में शामिल करने के लिए शहरवासियों से सहयोग की अपील की थी। बाद में 50 शहरों में रैंकिंग के लिए सहयोग की अपील की थी। इसके लिए निगम ने मोटा बजट खर्च किया था।
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