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प्रो-कबड्डी की शुरुआत से ही इस खेल के नियम भी बदले हैं। पहले खिलाड़ी कबड्डी-कबड्डी बोलकर खेलते थे, लेकिन अब कुछ नहीं बोलना पड़ता। एक खिलाड़ी को 30 सैकण्ड का समय दिया जाता है। उन्हें संसाधन भी दिए।
प्रो-कबड्डी की शुरुआत से ही इस खेल के नियम भी बदले हैं। पहले खिलाड़ी कबड्डी-कबड्डी बोलकर खेलते थे, लेकिन अब कुछ नहीं बोलना पड़ता। एक खिलाड़ी को 30 सैकण्ड का समय दिया जाता है। उन्हें संसाधन भी दिए।
पहले कबड्डी के प्रति लोगों का रुझान नहीं था। उसे हीन भावना से देखा जाता था। ट्रेनों में खिलाडिय़ों को रिर्जवेशन तक नहीं मिलता था, लेकिन बदले दौर में प्रो-कबड्डी लीग से लोगों का रुझान बढ़ा है।
मोहम्मद आजम खान, रैफरी
मोहम्मद आजम खान, रैफरी
read also : Video : डे-नाइट टेस्ट से पहले बांग्लादेश को सता रहा है ये डर, जानकर हैरान हो जाएंगे गांव में छोटे थे, तब मिट्टी में ही खेलते थे। एक शिक्षक ने मेरे टैलेंट को पहचाना और एकेडमी में दाखिला करवा दिया। राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मैं खेल चुका हूं। मेरा मानना है कि मिट्टी की जगह नेट पर फिटनेस व दमखम ज्यादा लगता है।
प्रतीक पाटिल, शिवाजी विवि कोल्हापुर
प्रतीक पाटिल, शिवाजी विवि कोल्हापुर
पहले खो-खो खेलते थे, लेकिन एक बार कबड्डी में भाग्य आजमाया तो शिक्षक ने कबड्डी खेलने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद आगे बढ़ते गए। छह बार राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुका हूं।
सौरभ पाटिल, शिवाजी विवि, कोल्हापुर
सौरभ पाटिल, शिवाजी विवि, कोल्हापुर