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कोटा

आपातकाल का विरोध करने वालों को मिली थी रूह कंपा देने वाली सजा

25 नवंबर 1975 आंदोलन को अंजाम देने के लिए ऐसे 11 साथियों का चुनाव किया गया जो पुलिसिया बर्बरता के आगे टूटें नहीं।

कोटाJun 25, 2018 / 12:13 pm

shailendra tiwari

fighters

आपातकाल का विरोध करने वालों को मिली थी रूह कंपा देने वाली सजा

कोटा. 25 नवंबर 1975… सूजा जी हॉस्टल कैथूनी पोल… मेज पर जलती मोमबत्ती… मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रांण न्यौछावर करने की शपथ लेते 11 हाथ… मुठ्ठियां बन जब एक साथ तने तो सख्त पहरे में बैठे मंत्री भी दहल उठे…खाकी के खौफ को परे धकेल ये नौजवान धड़ल्ले से कलक्ट्रेट में जा घुसे… जमकर पर्चे फैंके…लोकतंत्र को बचाने के लिए खूब नारेबाजी की… खिसियाई पुलिस ने सरकार का खौफ तारी करने को पांच दिन तक थाने में उल्टा लटका कर रखा… पहले कंबल और फिर ठंडा पानी डालकर बेइंतहा पीटा… जुल्म की इंतहा तो तब हो गई जब हाकिमों ने नाक, मुंह, कान और आंख ही नहीं गुप्तांगों तक में लाल मिर्च भर दी… लोकतंत्र के मतवाले फिर भी नहीं टूटे तो हार कर उन्हें जेल भेजना पड़ा।
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हाड़ौती के इतिहास में आपातकाल के सबसे खौफनाक मंजर को याद कर गिरिराज यादव अब भी पसीने से तरबतर हो जाते हैं। वो बताते हैं कि ‘लोकतंत्र का दमन अपने चरम पर था। बीकॉम प्रथम वर्ष के बद्री लाल शर्मा, कृष्ण मुरारी, राधेश्याम नागर, ओम त्रिपाठी और संजय गोयल समेत पूरे हॉस्टल के छात्र सरकार का घमंड तोडऩे के लिए आकुल थे। गोवा मुक्ति आंदोलन के प्रभारी रहे स्वामी माधव दास ने इस तड़प को आवाज दी और भगत सिंह की राह पर चलने का सुझाव दिया।
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भगत सिंह की तरह फेंके पर्चे

आंदोलन को अंजाम देने के लिए ऐसे 11 साथियों का चुनाव किया गया जो पुलिसिया बर्बरता के आगे टूटें नहीं। सूचना मिली कि राजस्थान सरकार के मंत्री हीरा लाल देवपुरा आपातकाल की समीक्षा करने के लिए टैगोर हॉल में बैठक करने वाले थे। अपनी आवाज उठाने को इससे बेहतर मौका नहीं मिलने वाला था।
तड़के हॉस्टल में शपथ ली और फिर राजकीय महाविद्यालय जा शहीद भगत सिंह की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद सर्किट हाउस होते हुए हम कलेक्ट्रेट तक जा पहुंचे। जहां इतनी कड़ी सुरक्षा थी कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता, लेकिन हम पुलिस को चकमा देकर अंदर जा घुसे और अपने साथ लाए पर्चे निकालकर फैंकने लगे। कुछ साथियों ने अदालत में घुसकर पर्चे फेंकने शुरू कर दिए। मंत्री की मौजूदगी में अचानक नारे बाजी होते देख पुलिसिया अमला हक्का बक्का रह गया।
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खाकी ने भरना चाहा खौफ
इसके बाद पुलिस हम सभी को गिरफ्तार करके नयापुरा थाने ले आई। जहां सीआई एसके जौहरी, डिप्टी एसपी भोपाल सिंह और एसपी फूल सिंह यादव ने हम सभी से पूछताछ की, लेकिन किसी के कुछ नहीं उगलवा सके। शुरुआती पूछताछ में डिप्टी को इतना जरूर समझ में आ गया कि मैं इस दल का नेतृत्व कर रहा हूं।
इसके बाद तो जैसे ही रात हुई मेरे कपड़े उतार लिए गए और थाने के पिछले हिस्से में ले जाकर उल्टा लटका दिया गया। करीब तीन घंटे बाद जल्लादनुमा सिपाही आए और उन्होंने पहले मेरे ऊपर कंबल डाला फिर बर्फ जैसा ठंडा पानी… मैं कुछ समझ पाता इससे पहले उन्होंने मुझे बेइंतहा पीटना शुरू कर दिया। पिटते-पिटते मैं बेहोश होजाता तो मुझे फिर से होश में लाया जाता और फिर बेहोश होने तक पीटा जाता। रूह तक कांप उठी नयापुरा पुलिस ने मेरी 5 दिन की रिमांड ली थी… चार दिन की पिटाई के बाद भी मैं नहीं टूटा तो पांचवे रोज अत्याचार की इंतहा ही हो गई।
पहले मेरे मुंह में जबरन लाल मिर्च ठूसी गई… फिर नाक… आंख और कान में… मैने इतने पर भी अपने साथियों और आंदोलन से जुड़े लोगों के नाम नहीं बताए तो जल्लादों ने मेरे गुप्तांगों में भी मिर्च भर दी… दो दिन तक बेहोश रहने के बाद आंख खुली तो खुद को सेंट्रल जेल में पाया। जहा मेरी हालत देख कैद किए गए हर लोकतंत्र सेनानी की रूह कांप उठी। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रचारक और आयुर्वेद के अच्छे जानकार ठाकुरदास टंडन ने कई महीने तक मेरा इलाज किया तब जाकर उठ-बैठने लायक हो सका।
नहीं ली कोई इमदाद

गिरिराज यादव बताते हैं कि 4 महीने 10 दिन तक सेंट्रल जेल में रहने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। जब इमरजेंसी खत्म हुई तो वह पीटीआई हो गए। सरकार ने घर और पैसों का लालच दिया, लेकिन ठुकरा दिया। अब जाकर कुछ साथियों ने जबरन पेंशन लगवा दी है। वो आखिर में कहते हैं कि… ये लोकतंत्र खून से सींचकर खड़ा किया गया है। इसे मजहबी और गैर वाजिब मसलों पर फिर से लुटाया नहीं जा सकता। यह बात आज की पीढ़ी को समझनी ही होगी।
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