युवा पीढ़ी की लोक संस्कृति व हिन्दी के प्रति उपेक्षा ने ही कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा रामू भैया को हिन्दी तिथियों, वास, त्योहार, पर नियमित लेखन के लिए प्रेरित किया।अब वे तीन वर्षों से से छंदात्मक लेखन कर युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ रहे हैं। अब तक वे एक हजार से अधिक रचनाएं लिख चुके हैं। होली, दिवाली, नवमी सभी अवसरों पर रचना लिखी है।
ऐसे जोड़ रहे संस्कृति से हमारे यहां सभी तीज त्योहार तिथियों से ही मनाए जाते हैं। रामेश्वर का मानना है कि अंगे्रजी माह व तारीख के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन हिंदी माह की तारीख व पक्ष, माह को युवा पीढ़ी कम ही जानती। वार, तिथि पर आधारित छंदों के माध्यम से बच्चों को जोडऩे का प्रयास है। वह इनका प्रकाशन भी करवाएंगे।वे रात को छंद रचकर अलसुबह पोस्ट करते हैं। हिन्दी के साथ अन्य सामान्य शब्दों का प्रयोग करते हैं। छंदों रचने में आंनद मिलता है। इसे आत्मानंद रस विधा नाम दिया है।
वर्षों से कर रहे हैं लेखन
हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा साहित्यकार रामेश्वर की कई म्हां सूं असी बणी, चालां सूरज ले र हाथ में, लातां लातां पींदा गळ ग्या,रोकड़ खाते सावन के,भादौ के भगवान, पद्य कथा संग्रह,तेरा एक भरोसा राम जैसी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। वह विभिन्न मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं। धार्मिक पात्रों के साथ संत, महात्मा,महापुरूष, चुनाव समेत अन्य विषयों 50 से अधिक चालीसा की रचना कर चुके हैं।