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1100 फीट से भी अधिक बोर कराने के बाद भी पानी नहीं आ रहा। इन चार पंचायतों में 400 से अधिक बोर कर दिए हैं, इसमें से 30 से 40 बोर ही पानी दे रहे हैं, वह भी रुक-रुक कर। एक खेत में तो 16 बोरिंग हो रहे हैं, जहां से तीन से चाल किमी तक लोग पानी पाइप लाइन के माध्यम से ले जा रहे थे, लेकिन इतने अधिक बोर होने से एक वर्ष पूर्व ये भी बंद हो गए। बंबोली गांव में अकेले 1 करोड़ रुपए लागत से किसानों ने बोरिंग कराए हैं। चारों पंचायतों में 3 करोड़ के बोरिंग हो चुके हैं।
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कुराड़ गांव निवासी बंसीलाल ने मुनाफे की 40 बीघा व स्वयं की 11 बीघा जमीन पर गेंहू की खेती की थी। बोरिंग में पानी नहीं आने से वह केवल गेहंू में एक बार ही पानी दे सका। इस कारण गेंहू की फसल की गुणवत्ता तो बिगड़ी ही दाने भी खत्म हो गए। अब फसल कटने को तैयार है, लेकिन बंसीलाल उसे नहीं काटेगा। एक बीघा फसल को काटने में 500 से 700 रुपए खर्च आएगा। अपनी व्यथा सुनाते हुए बंसीलाल का गला भर आया। उसने कहा कि इस फसल में प्रतिबीघा 1 बोरी गेहंू निकलेगा, वह भी खराब किस्म का होगा। इसलिए वह अपनी खड़ी फसल को नहीं काटेगा। ऐसे 100 से अधिक किसान हैं, जो इस बार लहसुन व गेहंू की फसल को नहीं काट रहे हैं। इनमें जानवर छोड़ रहे हैं। केवल पानी नहीं होने से इनकी सोना उगलने वाली जमीन बंजर होती जा रही है।
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खेती करने से नुकसान, नहीं करने से फायदा!
किसान खेती नहीं करेगा तो क्या करेगा। इन दिनों किसान का खेती करना नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। एक बीघा खेत में 5 हजार का खर्च आता है, जिसमें बीज, दवा, पानी, बिजली, डीजल, मेहनत शामिल है। किसान इस उम्मीद से फसल कर रहा है कि शायद पानी आ जाए और उसका कर्ज चुक जाए, लेकिन पिछले कई सालों से जल स्तर गिरता जा रहा है और किसान कर्ज में डूबता ही जा रहा है। हर बार फसल करने से किसान को 2 से 3 हजार रुपए बीघा नुकसान हो रहा है। जो किसान खेती नहीं कर रहा, वह नुकसान में नहीं जा रहा, लेकिन घर बैठे बर्बाद हो रहा है।