वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राजमार्ग के दोनों ओर हर साल पौधारोपण किया जा रहा है। इस वर्ष नीम, करंज, शीशम समेत अन्य वृक्षा के अलावा कचनार जैसे फूलदार पौधे रोपे जाएंगे। वहीं इनके अलावा प्लांटेशनों में आम व जामुन जैसे फलदार पौधे भी लगाएंगे। जब किसानों के खेतों के पास फलदार पौधे लगेंगे तो वे भी उनकी सारसंभाल के लिए प्रेरित होंगे।
विभागीय सूत्रों के अनुसार एक पौधे की सात से आठ साल तक देखभाल करने पर ही वह पेड़ का आकार लेता है। ऐसे में इनकी सुरक्षा के लिए कंटीले तारों की फेसिंग कराने के साथ प्लांटेशन की देखरेख के लिए चौकीदार नियुक्त करने होते हैं। इन्हें नियमित पानी देने के लिए बड़ी राशि खर्च करनी पड़ी है। ऐसे में एक पौधे को पेड़ बनाने में करीब 1500 रुपए का खर्च आता है। बजट की साठ फीसदी राशि तो प्लांटेशन की तार फेंसिंग में ही खर्च हो जाती है। इसके बावजूद क्षेत्र के किसान सहयोग करने के बजाए उनके खेतों के लिए सीधा रास्ता देने की बात को लेकर विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों से उलझते रहते हैं।
सूत्रों का कहना है कि पौधे राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत जमीन में ही लगाए जाने हंै, यह खेतों से सटी है। फसलों की कटाई के बाद जिले के किसान खेतों में खड़े फसलों के अवशेष जलाने के लिए उनमें आग लगा देते है। जिससे उनके समीप लगाए जाने वाले पौधे भी अवशेषों के साथ राख हो जाते हैं। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन पौधों की देखरेख के लिए वर्तमान में 40 से अधिक अस्थायी चौकीदार लगाए हुए हैं। कृषक इन चौकीदारों को धमका कर भगा देते हैं। जिला प्रशासन व कृषि विभाग के अधिकारी भी जिले में नौलाइयों में आग लगाने की परम्परा को नहीं रोक पा रहे।
सूत्रों ने बताया कि विभाग की ओर से अन्ता से शाहाबाद की ओर 52 किमी में राजमार्ग के दोनों ओर लगभग 30 हजार पौधे राजमार्ग की ओर से अधिग्रहीत भूमि में लगाए गए है। इनकी सुरक्षा के लिए तार फेसिंग भी कराई जाती है। लेकिन इनमें से अस्सी प्रतिशत पौधे ही पनप रहे हैं। वैसे तो जिले में पौधे लगाने का कार्य वर्ष 2012 में शुरू किया गया था, लेकिन तक चार-पांच दर्जन पौधे ही लग सके थे। इसके बाद 2014 में कैम्पा से बजट मिलने के बाद इस कार्य ने गति पकड़ी तथा हर वर्ष बजट के अनुसार पौधे लगा उनकी देखरेख का कार्य किया जा रहा है। जबकि पेड़ों की कटाई 2006 से 2008 के बीच कर दी गई थी।
राजीव कपूर, वन संरक्षक, बारां